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________________ समाज और संस्कृति प्रतिज्ञा पूरी करनी ही चाहिए । तुम्हें युधिष्ठिर का वध करना ही चाहिए । परन्तु बड़े भाई का वध कैसे किया जाता है, इस तथ्य का तुम्हें पता नहीं है । बड़े भाई का वध तलवार से नहीं, अपमान जनक शब्दों से किया जाता है । तुम अपमान जनक शब्द बोलकर युधिष्ठिर का वध कर सकते हो ।” अर्जुन ने क्रोध के आवेग में बहकर अपने बड़े भाई युधिष्ठिर के लिए बहुत कुछ बुरा भला कहा । अन्त में जब अर्जुन का क्रोध शान्त हुआ, तो वह अपने कृत्य पर पश्चात्ताप करने लगा । श्रीकृष्ण से उसने कहा - " मैंने बहुत बुरा किया है । इस अपराध से मुक्त होने के लिए आत्महत्या के अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं है, मैं आज जीवित अग्नि-प्रवेश करूँगा ।" इस स्थिति को भी श्रीकृष्ण ने संभाला और बोले—“तुम ठीक कहते हो, तुमने अपने बड़े भाई का जो घोर अपमान किया है, उसका प्रायश्चित्त तुम्हें करना ही चाहिए । इस पाप का प्रायश्चित्त आत्महत्या से ही किया जा सकता है, यह सत्य है, परन्तु शास्त्र में आत्महत्या का तरीका यह नहीं है कि शस्त्र से अपने शरीर के टुकड़े कर दिए जाएँ अथवा किसी अग्नि- प्रवेश आदि से शरीर को नष्ट कर दिया जाए । अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना ही सबसे बड़ी आत्महत्या है । तुम स्वयं अपने मुख से अपनी प्रशंसा करो, यह तुम्हारी आत्महत्या होगी और तुम अपने पाप का प्रायश्चित्त करके उससे विमुक्त हो सकोगे ।” कहा जाता है— अर्जुन ने कृष्ण के आदेशानुसार ऐसा ही किया, आखिर झगड़ा समाप्त हुआ । देखा आपने, कि मनुष्य किस प्रकार अपनी वाणी का दुरुपयोग करता है । और वाणी के दुरुपयोग से किस प्रकार अनर्थ उत्पन्न हो जाता है । इस प्रकार के अनर्थ से बचने के लिए, वाक्- संयम की बड़ी आवश्यकता है । वाक्-संयम को और मौन को वाणी का तप कहा गया है । मैंने आपसे कहा, कि छोटी या बड़ी किसी भी प्रकार की साधना क्यों न हो, प्रत्येक साधना में शक्ति की आवश्यकता है । शक्ति के अभाव में न इस लोक का कार्य सम्पन्न हो सकता है और न परोलक का ही कोई कार्य सम्पन्न किया जा सकता है । जीवन की सफलता का आधार एक मात्र शक्ति ही है । इसलिए शक्ति को ही मैं जीवन कहता हूँ । शक्ति के अभाव में जीवन शून्य है । शव में शक्ति नहीं रहती, इसीलिए उसे जीवन-हीन तत्व कहा जाता है । शिव में शक्ति होती है, इसीलिए उसे चेतन प्राणवान और सजीव कहा जाता है । शक्ति जीवन - विकास का १४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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