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शक्ति ही जीवन है
थी, उस समय अर्जुन ने प्रतिज्ञा कर ली थी, कि जो मेरे इस गाण्डीव धनुष का अपमान करेगा अथवा इसकी अवहेलना करेगा, मैं उसके प्राण लिए बिना न छोडूंगा । अर्जुन को अपने धनुष पर बड़ा अभिमान था । संयोग की बात है, युद्ध में युधिष्ठिर के सामने कर्ण आ गया । युधिष्ठिर और कर्ण में घोर युद्ध होने लगा । युधिष्ठिर को चारों ओर से घेर लिया गया । युद्ध करते-करते युधिष्ठिर परेशान हो गये । कर्ण ने कहा- - ' युधिष्ठिर ! मैं आज तुम्हें यमलोक पहुँचा सकता हूँ, लेकिन मेरी प्रतिज्ञा है, कि मैं कुन्ती के पुत्रों में से केवल एक अर्जुन को छोड़कर अन्य किसी को नहीं मारूँगा ।" बेचारे युधिष्ठिर चले आए कडुवा घूँट पीकर । दूसरी ओर से अर्जुन भी चला आ रहा था, आज उसने भारी संख्या में शत्रुओं का संहार किया था । अर्जुन अपने मन में सोच रहा था, सामने से मेरे बड़े भाई आ रहे हैं और आज मैंने एक बहुत बड़ा वीरता का काम किया है, इसलिए आज वे अवश्य ही मेरी वीरता की प्रशंसा करेंगे । परन्तु अर्जुन जब समीप आया, तब युधिष्ठिर ने कहा—“अर्जुन ! तेरा यह गाण्डीव धनुष किस काम का ? तेरे इस धनुष के होते हुए भी आज मेरा इतना बड़ा अपमान हुआ । तुझे तेरे इस गाण्डीव धनुष पर बड़ा अभिमान है, लेकिन इसके होते हुए भी कर्ण ने मेरा इतना बड़ा अपमान कर दिया । धिक्कार है, तेरे इस गाण्डीव धनुष को ।"
युधिष्ठिर की इस बात को सुनते ही अर्जुन का खून खौलने लगा । अर्जुन अपना अपमान सहन कर सकता था, लेकिन अपने गाण्डीव धनुष का अपमान वह सहन नहीं कर सकता था । अर्जुन ने क्रोध के स्वर में कहा - " मैं क्षत्रिय हूँ, और एक क्षत्रिय अपनी प्रतिज्ञा को अवश्य पूर्ण करता है । युधिष्ठिर ! तुमने मेरे गाण्डीव धनुष का अपमान किया है, इस समय तो तुम ही मेरे सबसे बड़े शत्रु हो । मैं कौरवों को बाद में समझँगा, पहले तुम्हें ही समझँगा ।" अर्जुन के क्रोध को देखर युधिष्ठिर भी सकपकाया । मुँह से निकला हुआ शब्द वापिस तो नहीं लिया जा सकता । इस विकट स्थिति में विराट पुरुष श्रीकृष्ण विचार करने लगे, बहुत बुरा हुआ । कहाँ तो कौरवों को विजय करने की योजना चल रही है और कहाँ आज अर्जुन अपने बड़े भाई का वध करने के लिए तैयार है । श्रीकृष्ण ने स्थिति की भयंकरता को समझा और बहुत ही शान्त स्वर में बोले – “अर्जुन ! तुम क्षत्रिय हो और एक क्षत्रिय को अपनी
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