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समाज और संस्कृति
हूँ,
वही सत्य है, यह एकान्त है और जो कुछ मैं कहता हूँ, वह भी सत्य और दूसरा जो कुछ कहता है उसमें भी सत्यांश हो सकता है, यह अनेकान्त है । एकान्त भी शक्ति है और अनेकान्त भी शक्ति है । एकान्त की भूमि में से कलह के कंटीले अंकुर फूटते हैं और अनेकान्त की भूमि में से सुरभित कुसुम फूटते हैं । शक्ति अपने आप में एक अमूल्य वस्तु है । उसका उपयोग और प्रयोग यदि सही तरीके से किया जाए, तो उससे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का हित ही होता है, अहित नहीं । निर्बल होकर जीवन जीने की अपेक्षा सबल होकर जीवन जीना निश्चय ही अच्छा है । प्रत्येक पिता अपने पुत्र को शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न करता है और प्रत्येक गुरु अपने शिष्य को शक्ति - सम्पन्न होने की शिक्षा देता है । इसका अर्थ है — शक्तिशाली होना प्रत्येक दृष्टि से अच्छा ही है, बुरा नहीं । शास्त्रकार केवल इस प्रसंग पर एक ही परामर्श देते हैं, कि शक्ति का प्रयोग करने से पूर्व जरा सोचो और समझो, कि शक्ति का प्रयोग किस दिशा में हो रहा है, सही दिशा में अथवा गलत दिशा में ? मनन से मन की शक्ति बढ़ती है, मौन से वाणी की शक्ति बढ़ती है और श्रम से शरीर की शक्ति बढ़ती है । अपनी शक्ति को अक्षुण्ण रख कर और अपने प्रयोजन की सिद्धि में उसका सुनियोजित प्रयोग करके मनुष्य जितना उसे घनीभूत करता है, उतनी ही मात्रा में वह शान्त और निर्द्वन्द्व हो जाता है । शान्त-भाव से अपनी शक्ति का प्रयोग करने वाला व्यक्ति अपने कार्य में सफलता प्राप्त कर लेता है । व्यर्थ में ही कोलाहल मचाने वाला व्यक्ति अपनी बिखरी हुई शक्ति का केन्द्रीकरण नहीं कर पाता । इसलिए किसी भी कार्य में उसे सफलता के दर्शन नहीं होते । याद रखिए, शान्त पानी ही गहरा और गम्भीर होता है । वेग से आने वाला पानी वेग के साथ बह जाता है । शक्ति सम्पन्न व्यक्ति कभी दिवा स्वप्न नहीं देखता । वह जो कुछ सोचता है, उसे क्रियान्वित करने का भी वह सफल प्रयास करता है । शक्ति हीन व्यक्ति दिवा स्वप्न ही देखा करता है । विकल्पों के जाल में वह इतना फँस जाता है, कि वह अपनी शक्ति को किसी भी एक कार्य में एकाग्र नहीं कर सकता और सफलता उससे कोसों दूर रहती है । विकल्पों के आवेग में बहकर अज्ञानी व्यक्ति अपने मन का अधिकार खो बैठता है और वह अपनी गम्भीरता, गरिमा और निर्णय - बुद्धि को घटिया विचारों से नष्ट कर देता है ।
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मैंने कहा आपसे कि शक्ति किसमें नहीं है, सभी में है । सृष्टि के कण-कण में शक्ति परिव्याप्त है । आवश्यकता है, केवल उसे समझने की
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