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________________ शक्ति ही जीवन है है । किसी के आँसू बहाना, यह भी उसका लक्ष्य हो सकता है और किसी के आँसू पोंछना, यह भी उसका लक्ष्य हो सकता है । यदि लक्ष्य अशुभ है, तो हम समझते हैं, उसने अपनी शक्ति का दुष्प्रयोग किया है । लक्ष्य का अच्छापन इस तथ्य को प्रमाणित करता है, कि इस व्यक्ति ने अपने शक्ति का शुभ प्रयोग किया है । प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति का प्रयोग करने से पहले, यह विचार कर लेना चाहिए, कि मैं अपनी शक्ति का प्रयोग एवं उपयोग कहाँ कर रहा हूँ और उससे मुझे किस फल की उपलब्धि हो सकेगी ? याद रखिए, दीवार पर घूँसा मारने से प्रहार करने वाले के ही हाथ में चोट लगती है । शक्ति अपने आपमें न शुभ है, न अशुभ है । उसकी शुभता और अशुभता, उसका प्रयोग करने वाले की भावना पर ही निर्भर है । हम यह नहीं समझ सकते, कि किस व्यक्ति के मानस में किस प्रकार की भावना का उदय हो जाए, किन्तु मन में भावना का जब उदय हो जाता है, और किसी कार्य के द्वारा जब उसकी अभिव्यक्ति हो जाती है, तब हम उसकी भावना के अच्छेपन और बुरेपन को आसानी से समझ जाते हैं । पापी से पापी व्यक्ति में भी शक्ति होती है और पुण्यात्मा व्यक्ति में भी शक्ति होती है, किन्तु दोनों की शक्ति का प्रयोग और उपयोग भिन्न-भिन्न परिणाम उपस्थित करता है । शक्ति होने पर भी उसके प्रयोग की सही दिशा का निर्णय करना आसान नहीं है । विवेक के अभाव में जो भी निर्णय होते हैं, उनका कभी सुफल नहीं होता । शक्ति ही सामर्थ्य है । मन की शक्ति, इन्द्रियों की शक्ति, बुद्धि की शक्ति और शरीर की शक्ति, शक्ति का एक रूप नहीं, नाना रूप होते हैं । परन्तु जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ, शक्ति के बिना संसार में किसी भी सफलता की प्राप्ति सम्भव नहीं है । अध्यात्म- दृष्टि से विचार किया जाए, तो वही व्यक्ति वास्तव में शक्तिशाली होता है, जो दूसरों को हानि पहुँचाने की शक्ति रखते हुए भी, किसी को हानि नहीं पहुँचाता और अपनी शक्ति का प्रयोग अपने उत्थान में तथा दूसरों के उत्थान में ही करता है । एक व्यक्ति अपनी शक्ति का प्रयोग पर - पीड़न में करता है और दूसरा व्यक्ति अपनी शक्ति का प्रयोग दूसरे के संरक्षण में करता है । पहली शक्ति को हम हिंसा कहते हैं और दूसरी शक्ति को, अहिंसा । हिंसा अधर्म है, और अहिंसा धर्म । धर्म भी एक शक्ति है और अधर्म भी एक शक्ति है । कल्याण - पथ पर नियोजित शक्ति से धर्म होता है, और कुमार्ग पर नियोजित शक्ति से अधर्म होता है । मैं जो कुछ कहता १३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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