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________________ शक्ति ही जीवन है जीवन में शक्ति की बड़ी आवश्यकता है, बिना शक्ति के न लौकिक कार्य सम्पन्न हो सकता है और न आध्यात्मिक साधना ही सम्पन्न की जा सकती है । प्रत्येक कार्य को सम्पन्न करने के लिए और उसे सफलता की सीमा पर पहुँचाने के लिए, शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की शक्ति अपेक्षित रहती है । समस्त सफलताओं के मूल में शक्ति ही एक मात्र उपादान है । विश्व का एक भी पदार्थ शक्तिहीन नहीं है । किसी में शक्ति प्रसुप्त रहती है और किसी में प्रबुद्ध । प्रसुप्त शक्ति को प्रबुद्ध करना ही विज्ञान का काम है । कोयला एक अचेतन तत्व है, देखने से लगता है कि यह शक्तिहीन है, पर ज्यों ही अग्नि से उसका स्पर्श हो जाता है, वह जल उठता है और उस एक ही कोयले में समग्र ग्राम और सम्पूर्ण नगर को अथवा समस्त वन को नष्ट करने की शक्ति आ जाती है । कोयले का अग्निरूप हो जाना ही उसकी शक्ति है । अवरुद्ध जल में प्रवाह नहीं होता, वह प्रवाह - हीन होकर शान्त पड़ा रहता है, किन्तु जब बाँध टूट जाता है, तो वह प्रवाह हीन जल प्रवाहशील बनकर सर्वनाश उपस्थित कर देता है । बाढ़ का वेगवान जल जिस किसी भी तरफ निकल जाता है, हाहाकार मचा देता है । बांध के शान्त जल को देखकर कोई भी व्यक्ति उसकी प्रचण्ड शक्ति की कल्पना नहीं कर सकता था । जल के कण-कण में परिव्याप्त विद्युत कणों को वैज्ञानिक प्रक्रिया के द्वारा एकत्रित करके जब विद्युत का रूप दिया जाता है, तब उसकी महाप्रचण्ड शक्ति का अनुमान लगाना भी साधारण - बुद्धि का काम नहीं रहता । आज के युग में कौन ऐसा व्यक्ति है, जो विद्युत की शक्ति से परिचित न हो । पवन जब मन्द मन्द बहता है, तब कितना प्रिय, कितना रुचिकर और कितना सुखद लगता है, पर वही जब प्रचण्ड अन्धड़ का रूप ग्रहण कर लेता है, तब दुनिया में तूफान वरपा कर देता है । यह सब शक्ति की महिमा है, यह शक्ति की गरिमा है । साधारण मनुष्य की साधारणं बुद्धि का जब किसी तेजस्विनी प्रतिभा से संस्पर्श हो जाता है, तब उसके जीवन में एक चमत्कार पैदा हो जाता है । साधारण से साधारण प्रतिभा भी शक्ति के स्पर्श से असाधारण प्रतिभा बन जाती है । प्राण-शक्तिहीन एवं कायर मनुष्य में जब साहस की शक्ति का संचार हो जाता है, तब - Jain Education International For Private & Personal Use Only १३३ www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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