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________________ मनुष्य की संकल्प-शक्ति पर चढ़कर मैं आगे बढ़ रहा हूँ ? दूसरों की जिन्दगी को कुचल कर आगे बढने में, तेरी कोई शान नहीं रहेगी । जिस व्यक्ति के हृदय में कभी पवित्र विचार और विशुद्ध संकल्प जागृत नहीं होते, वह व्यक्ति अपने जीवन का सुधार और निर्माण कैसे कर सकता है ? खेद है, कि मनुष्य इतना स्वार्थ-लिप्त होता जा रहा है, कि उसे इतना भी परिज्ञान नहीं रहता, कि मैं जो कुछ कर्म कर रहा हूँ, वह सत् है अथवा असत् है, वह कर्तव्य है अथवा अकर्तव्य है, वह हितकर है अथवा अहितकर है ? विवेकशील मनुष्य वही है, जो यह चिन्तन करता है, कि किस कर्म से मेरा हित होगा, किस कर्म से मेरे समाज का हित होगा और किस कर्म से मेरे राष्ट्र का हित होगा ? कहीं ऐसा न हो, कि ऊपर से तो तेरा जीवन फूल के समान महकता रहे, और अन्दर से वह विषाक्त बन जाए । दुर्भाग्यवश, यदि ऐसा हुआ, तो फिर न उसमें स्वयं मनुष्य का हित है, न उसके समाज का हित है, और न उसके राष्ट्र का हित है । वह मनुष्य अपने जीवन में किसी प्रकार का विकास नहीं कर सकता । मनुष्य को अपना विकास करने के लिए विचार-शक्ति की आवश्यकता आज के समाज और राष्ट्र के समक्ष सबसे अधिक ज्वलन्त प्रश्न यह है, कि मनुष्य की कसौटी क्या है, मनुष्य किसे कहा जाए ? क्या मात्र मानव-तन पाने से ही, मानव, मानव बन जाता है ? शब्द-शास्त्र के पण्डितों ने मानव, मनुष्य और मनुज तीनों का मूल रूप एक ही माना है । उन्होंने इन तीनों शब्दों की व्युत्पत्ति करते हुए कहा है-'मननात् मनुष्यः' । जो मनन करता है, वही मनुष्य है । मनुष्य, मनुष्य क्यों है ? मनुष्य को मनुष्य किस दृष्टि से कहते हैं ? इसलिए, कि वह मन की सन्तान है । यदि मनु की सन्तान होने से ही मनुष्य, मनुष्य है, तो फिर हमें यह सोचना होगा, कि वह मनु कौन है ? मनु व्यक्ति विशेष है अथवा और कुछ है ? मनु का अर्थ क्या है ? जब तक मनु के अर्थ का वास्तविक परिबोध न हो जाए, तब तक मानव की परिभाषा स्थिर नहीं की जा सकती है और उसकी वास्तविक व्याख्या नहीं की जा सकती है । मैं सोचता हूँ, मनु क्या था ? जिससे मनुष्य की उत्पत्ति हुई । कुछ लोग कहते हैं. मनु एक. ऋषि थे, उसकी जो संतान है, वे ही मनुज एवं मनुष्य कहलाते हैं । यही कारण है, कि मनुष्य और मानव को मनुज कहा जाता है । मनुज का अर्थ है-मनु से उत्पन्न होने वाला । परन्तु वह व्याख्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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