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________________ समाज और संस्कृति को छोड़ा, गुरु को पकड़ लिया । परिवार को छोड़ा, सम्प्रदाय को पकड़ लिया, धन-सम्पत्ति को छोड़ा, पूजा और प्रतिष्ठा को पकड़ लिया । मतलब यह है, कि पकड़ मिट्टी नहीं है । और जब तक पकड़ न मिटे तब तक अभीष्ट की सिद्धि हो नहीं सकती । मैं आपसे यह कह रहा था, भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन में अनित्यता और क्षण -१ -भंगुरता का उपदेश बार-बार इसीलिए दिया गया है, कि हम इस पकड़ की जकड़ से बच सकें । जब तक आत्मा राग की पकड़ में जकड़ा रहेगा, तब तक दुःख और क्लेश से उसे छुटकारा नहीं मिल सकता । दुःख और क्लेश से छुटकारा प्राप्त करना ही, भारतीय संस्कृति के मूल उद्देश्यों में, सबसे गम्भीर और सबसे समीचीन उद्देश्य है । इस लक्ष्य पर पहुँचने के लिए ही, अनित्यता और क्षणभंगुरता का उपदेश दिया गया है । जीवन - यात्रा में हताश और निराश होकर विलाप करने के लिए अनित्यता और क्षण भंगुरता का उपदेश नहीं दिया गया है । मैं आपसे अध्यात्म- जीवन की बात कह रहा था । जीवन का अध्यात्मवादी दृष्टिकोण समझने के लिए यह आवश्यक है, कि भौतिक पदार्थों के आकर्षण से बचा जाए । जिस व्यक्ति के जीवन में जितना अधिक भौतिक पदार्थों का आकर्षण होगा, उतना ही अधिक वह व्यक्ति अध्यात्म जीवन से दूर रहेगा । जब तक राग के विकल्प से विमुक्ति नहीं मिलेगी, तब तक वास्तविक मुक्ति होना कथमपि सम्भव नहीं है । राग - संयुक्त आत्मा कर्म का बन्ध करता है और राग - वियुक्त आत्मा कर्म का उच्छेदन करता है । राग एक बन्धन - बीज है, और इससे हजारों लाखों अंकुर जीवन की भूमि में प्रस्फुटित हो जाते हैं । राग जिस मनोभूमि में जन्म लेता है, उसी मनोभूमि में उसे दग्ध भी किया जा सकता है । राग के विपरीत भाव, वैराग्य भाव का जब तक हृदय में उद्भव न होगा, तब तक रागात्मक विकल्प से विमुक्ति नहीं मिलेगी । वैराग्य के स्थिरीकरण के लिए यह आवश्यक माना गया है, कि संसार की प्रत्येक वस्तु में अनित्यता और क्षण भंगुरता का दर्शन किया जाए । जब हमारे हृदय में यह विश्वास जम जाएगा, कि संसार की प्रत्येक वस्तु अनित्य और क्षणभंगुर है, तब हमारे हृदय में उस वस्तु के प्रति किसी भी प्रकार का आकर्षण नहीं रहेगा । संसार में सभी प्रकार की वस्तु हैं, सुन्दर भी और असुन्दर भी । सुन्दर वस्तु में राग- बुद्धि और असुन्दर वस्तु में द्वेष - बुद्धि, यही समस्त बुराइयों की जड़ है । मैं आपसे यह कह १२८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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