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________________ जैन धर्म अतिवादी नहीं है तो और क्या है ? सामायिक करना अच्छा है, बहुत अच्छा है, किन्तु विवेक के अभाव में इस उत्तम साधना का भी मजाक बन जाता है । सामायिक की साधना का लक्ष्य है, मन में समताभाव बढ़े, ज्ञान की ज्योति जगे. किन्तु जिस सामायिक की साधना से मन की विषमता बढ़ती हो, मन की समाधि भंग होती हो, अज्ञान का अन्धकार और गहरा होता हो, उस साधना को विवेकमयी साधना नहीं कहा जा सकता । आज हजारों लाखों श्रावक और श्राविकाएँ सामायिक की साधना करते हैं, प्रतिदिन प्रतिक्रमण भी करते हैं, किन्तु यदि सामायिक करने पर और प्रतिक्रमण करने पर भी मन में समता-भाव न आए, मन स्थिर न रहे, तो समझना चाहिए, कि हमारी यह साधना, साधना नहीं है । जैन धर्म में और जैन संस्कृति में विवेक शून्य साधना का कुछ भी मूल्य नहीं है । जिस साधना के पीछे ज्ञान और विवेक न हो, वह देह-कष्ट मात्र है, साधना नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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