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________________ ७. सुषुप्तक ये सात अज्ञान की भूमिकाएँ हैं । १. शुभ इच्छा २. विचारणा ३. तनु मानसा ४. सत्त्वापत्ति ५. असंसक्ति ६. पदार्था भाविनी ७. तूर्यगा ये सात ज्ञान की भूमिकाएँ हैं । जैन दर्शन का अध्यात्मवाद ७५ अज्ञान को सप्त भूमि : ( १ ) इसमें अहंत्व तथा ममत्व की बुद्धि की जागृति नहीं होती । बीज रूप में जागृति की योग्यता होती है । यह भूमिका वनस्पति आदि क्षुद्र - निकाय में मानी जाती है । (२) इस में अहंत्व एवं ममत्व बुद्धि अतिसूक्ष्म अंश में जागृत होती है । (३) इसमें अहंत्व तथा ममत्व बुद्धि की विशेष रूप में पुष्टि होती है । यह भूमिका मानव और देवों में मानी जाती है । (४) इसमें जागते हुए भी भ्रम का समावेश होता है । जैसे एक चन्द्र के दो चन्द्र देखना । शुक्ति में रजत का भ्रम हो जाना । ( ५ ) इसमें निद्रा अवस्था में आए हुए स्वप्न का जागने के बाद भी भान होता है । (६) इसमें वर्षों तक प्रारम्भ रहे हुए स्वप्न का समावेश होता है । शरीर पात हो जाने पर भी चलता रहता है । ( ७ ) इसमें प्रगाढ़ निद्रा जैसी अवस्था हो जाती है। जड़ जैसी स्थिति हो जाती है । इसमें कर्म, केवल बासना रूप में रहते हैं । ये सात अज्ञान की भूमिकाएँ हैं । इनमें तीसरी से सातवीं तक की भूमिकाएँ मानव निकाय में होती हैं । ज्ञान की सप्त भूमि : ( १ ) इसमें आत्म-निरीक्षण की वैराग्यमय इच्छा होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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