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६० अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय काल कहते हैं। प्रत्येक कर्म का अबाधा काल उस कम की स्थिति के अनुसार ही होता है । उदय का अर्थ है-कर्म के फल देने को। वह दो प्रकार का है-फलोदय एवं प्रदेशोदय । कर्म जब अपना फल देकर नष्ट होता है, तब वह फलोदय कहा जाता है। कर्म जब बिना फल के ही नष्ट हो जाता है, तब उसको प्रदेशोदय कहा जाता है । उदीरणा का अर्थ है-नियत समय के पूर्व कर्म का विपाक हो जाना। इसको उदीरणा कहते हैं। उदीरणा के पूर्व अपकर्ष करण के द्वारा कम की स्थिति को कम कर दिया जाता है। स्थिति घट जाने पर कम नियत समय के पूर्व ही उदय में आ जाता है। प्राणी जब असमय में ही मर जाता है, तब उसको अकाल मृत्यु, लोक में कहा जाता है । अकाल मृत्यु का कारण आयुष्य कर्म की उदीरणा ही है। क्योंकि स्थिति का घात जब तक न हो, तब तक उदीरणा नहीं होती । संक्रमण का अर्थ है-एक कर्म का दूसरे सजातीय कर्म रूप हो जाना । यह संक्रमण कर्म के मूल भेदों में नहीं होता । जैसे कि ज्ञानावरण, दर्शनावरण नहीं हो सकता है। किन्तु एक कर्म का अवान्तर भेद अपने सजातीय अन्य भेद रूप हो सकता है। साता असाता में, और असाता साता में बदल जाता है । यद्यपि संक्रमण एक कर्म के अवान्तर भेदों में ही होता है, तथापि इसका अपवाद भी है । जैसे कि आयुष्य कर्म के चार भेदों में परस्पर संक्रमण नहीं होता । जिस जीव ने नरक गति के आयुष्य का बन्ध किया है, उसको नरक गति में ही जाना पड़ता है, किसी भी अन्य गति में नहीं जा सकता। उपशम का अर्थ हैकर्म को उदय में नहीं आने देना। उदय में आने के अयोग्य कर देना । इसी का नाम है-उपशम करण । निधत्ति का अर्थ है-कम का संक्रमण और उदय न हो सकना । इस दशा में कर्म का न तो संक्रमण ही हो पाता है, और न उदय हो पाता है । निकाचना का अर्थ है-कर्म में न तो उत्कर्षण होता है, न अपकर्षण, न संक्रमण और न उदय ही हो पाता है । जैन सिद्धांत में कर्मों का जितना विशद, व्यापक और स्पष्ट वर्णन उपलब्ध है, उतना
और वैसा अन्यत्र देखने में नहीं आता। कर्मवाद जैन दर्शन का प्राणभूत सिद्धान्त रहा है। जीवन की समस्याओं का समाधान इसमें है। ईश्वरवाद और कर्मवाद :
भारतीय दर्शनों में ईश्वरवाद के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की अवधारणाएँ रही हैं । ईश्वर है, ईश्वर नहीं है। ये दोनों पक्ष भारत के विभिन्न दार्शनिक सम्प्रदायों में, मुख्य रूप से परिचर्चा के विषय रहे हैं। ईश्वर है, वह जगत् का कर्ता है, वह जगत् धर्ता है, वह जगत् संहर्ता है। ईश्वर सर्व
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