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परिशिष्ट
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नाम निक्षेप :
लोक व्यवहार चलाने के लिए किसी वस्तु का कोई नाम रख देना, नाम निक्षेप होता है। जैसे किसी व्यक्ति का नाम, महावीर रख देना। यहाँ महावीर शब्द का जो अर्थ है, वह विल्कुल भी अपेक्षित नहीं है। नाम निक्षेप में, यथा नाम जाति, गुण, द्रव्य और क्रिया की आवश्यकता नहीं होती । मनुष्य इच्छानुसार कुछ भी नाम रख सकता है । स्थापना निक्षेप :
किसी वस्तु की अन्य वस्तु में यह कल्पना करना, कि 'यह वह है' स्थापना निक्षेप है। इसके दो भेद हैं - तदाकार स्थापना और अतदाकार स्थापना । मूर्ति तथा चित्र आदि में किसी को स्थापना करना, तदाकार स्थापना है । शतरंज के मोहरे आदि गज, अश्व, बजीर एवं बादशाह आदि की कल्पना, अतदाकार स्थापना है। इसमें आरोप किया जाता है। द्रव्य निक्षेप :
भविष्य में होने वाली पर्याय वाला पदार्थ द्रव्य निक्षेप कहा जाता है। उसके दो भेद हैं-आगम द्रव्य निक्षेप और नो आगम द्रव्य निक्षेप । तद् विषयक शास्त्र का जानने वाला, अनुपयुक्त आत्मा आगम द्रव्य निक्षेप कहा जाता है। जैसे राजा के ज्ञान वाला अनुपयुक्त अर्थात् उस समय राजा के ज्ञान के उपयोग रहित, आत्मा आगम द्रव्य राजा है। दूसरे नो आगम द्रव्य निक्षेप के तीन भेद हैं-ज्ञान-शरोर, भावि और तव्यतिरिक्त । पहले भेद से राजा के जानने वाले का शरीर राजा कहलाता है। ज्ञाता और शरीर का एक क्षेत्रावगाह सम्बन्ध होने से ज्ञाता का त्रिकाल गोचर शरीर ही इसका विषय है। कार्य का उपादान कारण ही भावि नो आगम द्रव्य कहलाता है। इस भेद के अनुसार युवराज भी राजा कहा जा सकता है। क्योंकि वह भावी राजा का उपादान कारण है। पदार्थ के निमित्त कारण उसके आधार आदि अन्य सभी वस्तुएँ तद्व्यतिरिक्त नो आगम द्रव्य कहलाती हैं। जैसे राजा के शरीर आदि । द्रव्य निक्षेप के इस भेद के अनुसार न केवल राजा का शरीर, अपितु राजा की माता, पिता तथा उसके परिवार के अन्य जन भी राजा कहला सकते हैं। यह नो आगम द्रव्य निक्षेप है। भाव निक्षेप :
वर्तमान पर्याय सहित द्रव्य को भाव निक्षेप कहते हैं। उसके दो
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