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________________ लेश्याओं के रूप में चित्रण १६६ होता है । यह व्यक्ति ईर्ष्यालु होता है। दूसरों का किसी भी प्रकार का महत्त्व इसे सह्य नहीं होता । इसका हृदय प्रायः अमर्ष से आपूरित रहता है । निष्काम तप एवं सम्यक्-ज्ञान से शून्य होता है। साथ ही यह छलकपट, निर्लज्जता, आसक्ति, प्रदोष, मूढ़ता आदि दोषों का केन्द्र होता है। वह अपने ही व्यक्तिगत सुखों में लिप्त, अधिकाधिक सुखोपभोग की आकांक्षा वाला स्वार्थ सिद्धि हेतु दुःसाहसी हो जाता है। ३. कापोत लेश्या: उक्त लेश्या वाले प्राणी की वृत्ति कबूतर के रंग के समान रक्तकृष्ण वर्ण रूप एक विचित्र ही रूप ले लेती है। यह व्यक्ति विचारने, बोलने और कर्म करने में एक रूप न होकर वक्र होता है । अपने दोषों को छिपाये रखता है और दूसरों के दोषों को उद्घाटित करता फिरता है। धर्म एवं सदाचार की बुद्धि से रहित होता है। प्रायः अनार्य कर्मों में ही अभिरुचि रखता है। धर्म-शास्त्रों में उक्त तीनों लेश्याओं को अधर्म अर्थात् पाप को संज्ञा दी है । यह ठीक है, कि वर्णन में पाप-वृत्ति के रूप में एक रूपता जैसी प्रतीति होती है, तथापि उत्तरोत्तर कुछ-न-कुछ न्यूनता अवश्य होती है। किन्तु भावों के मालिन्य एवं प्रदूषण के कारण ये सब भाव पाप की छाया से ही आवृत्त हैं । अतः इन सबकी सामान्य रूप से अधर्म अर्थात् पापाचरण में ही परिगणना की गई है। गहराई से देखा जाए, तो ये सब अधर्म लेश्याएं ही हैं। इनमें धर्म कहीं भी परिलक्षित नहीं होता है। अग्रिम तेजो लेश्या आदि धर्म लेश्याएं हैं। ये उत्तरोत्तर विशुद्ध होती गई हैं धर्म की दिशा में अर्थात् पवित्रता की दिशा में । अतः शास्त्रकार इनको धर्म की संज्ञा से अभिहित करते हैं। इनमें अंशतः अधर्म का भी यथाप्रसंग कुछ भाव रहता है, फिर भी वह इतना अल्प-अल्पतर होता है, कि उसकी यहाँ परिगणना नहीं की गई है। अतः इनको मुख्यत्वेन धर्म के पवित्र नाम से एक ही रूप में संबोधित कर दिया गया है। ४. तेजो लेश्या : यह लेश्या भाव विशुद्धि का एक प्रकार से प्रथम चरण है। उक्त लेश्या वाला व्यक्ति जाति-कुल आदि के अभिमान से प्रायः मुक्त रहता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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