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________________ भारतीय दर्शन के सामान्य सिद्धान्त ७ किया जा सकता है । बौद्ध-दर्शन परिवर्तनवादी दर्शन रहा है । वह परिवर्तन अथवा अनित्यता में विश्वास करता है, नित्यता को वह सत्य स्वीकार नहीं करता । बौद्धों के अनेक सम्प्रदाय हैं, उनमें से वैभाषिक और सौत्रान्तिक सर्वास्तिवादी हैं। इन्हें बाह्यार्थवादी भी कहा जाता है। क्योंकि ये दोनों सम्प्रदाय समस्त बाह्य वस्तुओं को सत्य मानते हैं । वैभाषिक बाह्य प्रत्यक्षवादी हैं । उसका मत यह है, कि बाह्य वस्तु क्षणिक हैं, और उनका प्रत्यक्ष ज्ञान होता है। सौत्रान्तिक बाह्यानुमेयवादी हैं। इनका मत यह है, कि बाह्य पदार्थ, जो कि क्षणिक हैं, प्रत्यक्षगम्य नहीं हैं, बल्कि मन में उनकी जो चेतना उत्पन्न होती है, उससे उनका अनुमान किया जाता है। योगाचार सम्प्रदाय विज्ञानवादी है । इसका मत यह है, कि समस्त बाह्य वस्तु मिथ्या हैं, और चित्त में जो कि विज्ञान सन्तान मात्र है, विज्ञान उत्पन्न होते हैं, जो निरालम्बन हैं। योगाचार मनोविज्ञानवादी है। माध्यमिक सम्प्रदाय का मत यह है, कि न बाह्य वस्तुओं की सत्ता है, और न आन्तरिक विज्ञानों की। ये दोनों ही संवृत्ति-मात्र हैं। तत्त्व निःस्वभाव है, अनिर्वाच्य है और अज्ञेय है । कुछ बौद्ध विद्वान केवल निरपेक्ष चैतन्य को ही सत्य मानते हैं । जैन-दर्शन मूल में द्वैतवादी दर्शन है। वह जीव की सत्ता को भी स्वीकार करता है, और जीव से भिन्न पुद्गल की सत्ता को भी सत्य स्वीकार करता है । जैन-दर्शन ईश्वरवादी दर्शन नहीं हैं। जैनों के चार सम्प्रदाय हैं-श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी और तेरापंथी । इन चारों सम्प्रदायों में मूल तत्त्व के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का मतभेद नहीं है। तत्त्व सम्बन्धी अथवा दार्शनिक किसी प्रकार का मतभेद इन चारों ही सम्प्रदायों में नहीं रहा, परन्तु आचार-पक्ष को लेकर इन चारों में कुछ विचार भेद रहा है। वास्तव में अहिंसा और अपरिग्रह की व्याख्या में मतभेद होने के कारण ही ये चारों सम्प्रदाय अस्तित्व में आए हैं, किन्तु तात्त्विक दृष्टि से इनमें आज तक भी किसी प्रकार का भेद नहीं रहा। चार्वाकों में भी अनेक सम्प्रदाय रहे थे-जैसे चार भूतवादी और पांच भूतवादी। इस प्रकार भारत के दार्शनिक सम्प्रदाय अपनी-अपनी पद्धति से भारतीय दर्शन-शास्त्र का विकास करते रहे हैं। भारतीय दर्शनों के सामान्य सिद्धान्त : भारतीय दर्शनों के सामान्य सिद्धान्तों में मुख्य रूप में चार हैंआत्मवाद, कर्मवाद, परलोकवाद और मोक्षवाद । इन चारों विचारों में भारतीय दर्शनों के सभी सामान्य सिद्धान्त समाविष्ट हो जाते हैं । जो rar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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