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१०६ अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय अवयव मानने पड़ेंगे, और उनका कोई अन्त नहीं होगा। इस स्थिति में उनके परिमाण भेद को भी नहीं समझा जा सकेगा। तब एक पर्वत और एक सरसों के बीज को तुल्य मानना पड़ेगा। क्योंकि दोनों ही के अनन्त सूक्ष्म अवयव होंगे । यही कारण है, कि परमाणुओं को मूर्त द्रव्यों के सूक्ष्मतम भाग और अविभाज्य मानना पड़ता है । वैशेषिक दर्शन में परमाणु के स्वरूप के सम्बन्ध में बहुत सूक्ष्म विचारणा की गई है । वैशेषिक दर्शन में परमाणु. वाद पर जितना गम्भीर विचार किया गया है, उतना अन्य किसी दर्शनपरम्परा में नहीं। जैन-परम्परा के मूल-आगम तथा तात्त्विक ग्रन्थों में भी परमाणुओं की गम्भीर चर्चा है । यूनानी परमाणुवाद :
भारत से बाहर यूनान में भी परमाणु पर स्वतन्त्र रूप से विचार किया गया है। कुछ लोगों का मत है, कि जब भारत का यूनान से सम्पर्क हुआ, तब वैशेषिक दर्शन ने यूनान से परमाणुवाद को ले लिया था । परन्तु इस तथ्य को मानने के लिए किसी भी प्रकार का पुष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं होता । लेकिन इतना सत्य अवश्य है, कि वैशेषिक परमाणुवाद और यूनानी परमाणुवाद एक नहीं है, उनमें बहुत बड़ा अन्तर है । यूनान में डिमोकाइट्स और ल्यूशियस ने परमाणुओं की संख्या अनन्त मानी है, और उन्हें गुणों से रहित तथा परिमाण से युक्त कहा है। यदि परमाणुओं में किसी प्रकार का गुण न हो, तो उनसे उत्पन्न कार्य में गुण कैसे आ जाता है ? इस तर्क का उत्तर यूनानियों के पास नहीं था। कणाद ने यूनानियों के मत के विपरीत परमाणुओं में गौण गुण भी माना है। दोनों मतों में दूसरा अन्तर यह है, कि यूनानी परमाणुओं को स्वभावतः सक्रिय मानते हैं, जबकि कणाद उन्हें स्वभावतः निष्क्रिय मानता है। तीसरा अन्तर यह है, कि डिमोक्राइट्स ने जीवात्माओं को भी सूक्ष्म परमाणुओं से निर्मित बताया, जबकि कणाद ने जीवात्माओं और परमाणुओं को परस्पर भिन्न बताया और कहा कि परमाणु भौतिक है और आत्मा अभौतिक है। चतुर्थ अन्तर यह है, कि डिमोक्राइट्स और ल्युसियस भौतिकवादी थे, और समस्त संसार का मूल परमाणुओं को मानते थे। इस प्रकार दोनों में पर्याप्त भेदभाव नजर आता है ।
वैशेषिक-दर्शन में परमाणओं को भौतिक माना गया है, और आत्माओं को अभौतिक । वैशेषिक मत में ईश्वर भी भौतिक नहीं है। ईश्वर कर्म के नियम के अनुसार परमाणओं से जगत का निर्माण करता
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