SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Kun सम्पादकीय . . पूज्य गुरुदेव, प्रज्ञामहर्षि उपाध्याय कविरल, दार्शनिक सूक्ष्मप्रज्ञ, परम श्रद्धेयवर श्री अमरचन्द्र जी महाराज का सन् १९६० में कलकत्ता वर्षावास था। उस समय प्रवचन-सरिता का जो प्रवाह प्रवाहित हुआ था, उनका आलेखन तथा आकलन, प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने किया था। उस आधार पर प्रवचनों का सम्पादन मैंने किया था-अध्यात्म-प्रवचन। जन-जन के मन को यह पुस्तक अतिप्रिय एवं रुचिकर लगी। आज से दस वर्ष पूर्व ही पुस्तक अनुपलब्ध हो चुकी थी। लेकिन अनेक कारणों से उसका पुनः प्रकाशन समय रहते नहीं हो सका था। अध्यात्म-प्रवचन दो भागों में प्रकाशित हो रहा है। प्रथम भाग में दर्शन-मीमांसा है, जिसमें सम्यग्दर्शन के सभी अंगों पर विस्तार से वर्णन किया गया है। इतना मूल-स्पर्शी तथा तलस्पर्शी वर्णन अन्यत्र उपलब्ध नहीं होगा। द्वितीय भाग में ज्ञान-मीमांसा और आचार-मीमांसा का बहु आयामी वर्णन किया गया है। इस प्रकार दोनों भागों में मोक्ष के उपाय भूत साधनों का सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का वर्णन किया है। मोक्ष की साधना ही जैन धर्म की मुख्य साधना कही जा सकती है। विगत वर्ष यदि मैं ग्वालियर न गया होता, तो द्वितीय भाग कभी का प्रकाशित हो गया होता। फिर बीच-बीच में मेरा स्वास्थ्य भी अनुकूल नहीं था। ग्वालियर से आगरा आकर भी स्वास्थ्य बिगड़ गया था। लेकिन मनोबल एवं संकल्प शक्ति से कार्य को सम्पन्न करके मुझे परम सन्तोष तथा परम आनन्द है। आचार-मीमांसा मैंने ग्वालियर से आकर । आगरा में लिखी है। आचार को अधिक पारिभाषिक होने से बचाया है। अधिक से अधिक सरल भाषा में अभिव्यक्त किया है। जैन समाज के प्रसिद्ध साहित्यकार, सफल लेखक तथा कलाकार श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' ने मुद्रण, प्रकाशन एवं कलाकरण में पूरा-पूरा अवधान देकर पुस्तक को सुन्दरतम बना दिया है। उनके प्रकाशन समस्त जैन समाज में समादृत होते जा रहे हैं। पुस्तक को सुन्दर बनाने का समग्र श्रेय सुराना जी को ही जाता है। -शास्त्री विजय मुनि जैन भवन, मोतीकटरा आगरा - १८-४-९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy