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________________ १४२ अध्यात्म-प्रवचन १३. आय से कम व्यय करे १४. अपनी स्थिति के अनुरूप वस्त्र धारण करे १५. अनुदिन धर्म का श्रवण करे, उस पर विचार करे १६. अजीर्ण हो जाने पर भोजन का त्याग करे १७. नियत समय पर भोजन करे, सन्तोष रखे १८. परस्पर अविरुद्ध धर्म पूर्वक त्रि-पुरुषार्थ की कामना करे १९. अतिथि, साधु एवं याचक का यथायोग्य सत्कार करे २०. किसी प्रकार का कदाग्रह न रखे २१. गुणों का पक्षपात करे तथा प्रशंसा करे २२. देश-काल के प्रतिकूल आचरण न करे २३. अपनी शक्ति एवं योग्यता का विचार करके कार्य करे २४. वृद्ध जनों का सदा विनय करे २५. अपनी सन्तान का पालन-पोषण-शिक्षण करे २६. दीर्घदर्शी हो, भविष्य का विचार करे २७. स्व-पर-हित का सदा विचार करे २८. लोकप्रिय हो, प्रेम से सबकी सेवा करे २९. कृतज्ञ हो, दूसरों के उपकार को न भूले ३०. लज्जा-शील हो, बुरा काम करने में लज्जा करे ३१. दयाशील हो, दीन-हीनों पर करुणा करे ३२. सौम्य हो, सदा शान्त एवं प्रसन्न हो ३३. परोपकारी हो, दूसरों का उपकार करे ३४. षड् अरि-वर्ग पर विजय करे-काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य ३५. इन्द्रिय निग्रह करे ___ वीतराग-धर्म के मार्ग का अनुसरण करने वाले व्यक्ति में इन गुणों का, इन नियमों का और इन बोलों का होना, अनिवार्य माना गया है। क्योंकि यह व्यवहार के सिद्धान्त हैं। व्यवहार तथा नीति के अभाव में, धर्म और अध्यात्म की साधना सम्भव नहीं होती। व्रत रूप धर्म और प्रतिमा रूप अध्यात्म की साधना के लिए व्यवहार और नीति पथ पर चलना आवश्यक है। लोक में सर्वप्रथम व्यवहार और नीति को ही देखा जाता है। धर्म और अध्यात्म तो बहुत दूर एवं उच्चतर वस्तु हैं, अन्दर की, आत्मा की वस्तु हैं, बाहर की नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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