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________________ ६. श्रावक का सम्यक्त्व व्रत आचार्य उमास्वाति ने स्व-प्रणीत तत्वार्थ सूत्र में, प्रथम अध्याय के द्वितीय सूत्र में, सम्यग्दर्शन का अर्थात् सम्यक्त्व का लक्षण इस प्रकार से किया है - तत्वार्थ-श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् । तत्वभूत जो अर्थ अर्थात् पदार्थ, उन पर या उनमें श्रद्धान करना, निष्ठा एवं आस्था रखना, सम्यक्त्व है, सम्यग्दर्शन है, यथार्थ दृष्टि है। किसी भी व्रत को ग्रहण करने से पूर्व सम्यग्दर्शन का होना, परम आवश्यक माना गया है, जिन-आगम में । वस्तु के यथार्थ स्वरूप पर श्रद्धान अर्थात् विश्वास रखना, वस्तु के यथार्थ स्वरूप को समझना, सम्यग्दर्शन है। यही सम्यक्त्व है। आवश्यक सूत्र में, सम्यक्त्व का स्वरूप इस प्रकार से प्रतिपादित किया है, कि राग-द्वेष के विजेता अर्हन् को देव समझना, धर्म का मार्ग बताने वाले निर्ग्रन्थ श्रमण को गुरु समझना और वीतराग कथित तत्वों को सत्य समझना, उन पर रुचि रखना - यही सम्यक्त्व है। एक अन्य प्रकार से भी सम्यक्त्व का लक्षण किया जाता है। जैसे कि आप्त, आगम एवं आज्ञा पर पूरा विश्वास रखना । यथार्थ वक्ता और यथार्थ दर्शी को जिन शासन में आप्त कहा गया है। इस प्रकार अर्हन् वीतराग और सर्वज्ञ ही वस्तुतः आप्त पुरुष हैं। आप्त पुरुष की वाणी को आगम कहा जाता है । आगम में जो विधि और निषेध किया गया है, वही आज्ञा है। इन तीनों पर अपार आस्था को सम्यग्दर्शन, श्रद्धान और सम्यक्त्व कहते हैं। सम्यक्त्व के पाँच लक्षण : सम्यग्दर्शन आत्मा का निज गुण है। उसका पता कैसे लगे, कि इस जीव में वह है, और इसमें नहीं है। अतः शास्त्रकारों ने सम्यग्दर्शन के पाँच लक्षण बताए हैं २. संवेग ४. अनुकम्पा १. प्रशम ३. निर्वेद ५. आस्तिकता कषाय की मन्दता, उपशमता और क्षीणता को प्रशम कहा गया है। क्रोध न हो, या कम हो, मान न हो, या कम हो, माया न हो, या कम हो, लोभ न हो, या बहुत कम हो । संसार के पदार्थों पर रुचि न होकर, मोक्ष में रुचि को संवेग कहते हैं । विषय और कषाय भाव से विरक्ति को निर्वेद कहा है। संसार के सहाय-हीन प्राणियों पर करुणा को अनुकम्पा कहते हैं। आत्मा की त्रिकाल सत्ता पर विश्वास को आस्तिकता कहते हैं। १३६ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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