SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकादश प्रतिमा : उपासक की उच्चतर साधना १२५ विशेष, तप विशेष और साधना विशेष । यहाँ पर साधना विशेष अर्थ ही अभिप्रेत है। श्रावक जीवन की यह एक विशिष्ट साधना है- अगार से अनगार बनने की एक दिशा है, एक सोद्देश्य अन्तर्यात्रा है, मूल से शिखर की गति है, उपासक पोषध-शाला में जाकर अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रतों के अतिरिक्त जिन प्रतिज्ञाओं को ग्रहण करता है, उन्हें पडिमा अर्थात् प्रतिमा तथा प्रतिज्ञा कहा गया है। समवायांग सूत्र की अभयदेव विरचित वृत्ति में कहा गया है, कि जो श्रमण की उपासना करते हैं, वे उपासक कहलाते हैं। उपासकों की प्रतिज्ञा अथवा प्रतिमा, उपासक प्रतिमा हैं । उपासक की एकादश प्रतिमाओं का उल्लेख अनेक आगमों में है। अंग-शास्त्र में चतुर्थ अंग समवायांग सूत्र में और छेद सूत्रों में आचार-दशा में तथा आवश्यक सूत्र की व्याख्या में विशेष वर्णन उपलब्ध होता है। मुख्य रूप में उपासक दशांग सूत्र में वर्णन है । क्योंकि इस सूत्र में श्रावक की साधना का वर्णन किया है। उपासक दशांग सूत्र के अनुसार वर्णन इस प्रकार है १. दर्शन प्रतिमा ३. ५. प्रतिमा- प्रतिमा ७. सचित्त आहार वर्जन प्रतिमा ९. प्रेष्य आरम्भ वर्जन प्रतिमा सामायिक प्रतिमा १. दंसण पडिमा ३. सामाइय पडिमा ५. दिवा बंभचेर पडिमा ७. सचित्त परिण्णाय पडिमा ९. पेस परिण्णाय पडिमा ११. समणभूय पडिमा २. व्रत प्रतिमा ४. ६. ८. १०. ११. श्रमणभूत प्रतिमा आचार-दशा में एकादश प्रतिमा : छेद-सूत्रों में आचार में लगने वाले अतिचार - दोषों के प्रायश्चित्त का वर्णन किया गया है । छेद सूत्रों की संख्या के विषय में मतभेद रहा है। छेद सूत्रों की संख्या छह हैनिशीथ, महानिशीथ, कल्प, व्यवहार, पञ्चकल्प और जीत कल्प। चार संख्या इस प्रकार हैं- आचार-दशा, निशीथ, कल्प और व्यवहार । आचार दशा में प्रतिमाओं का विस्तार से वर्णन है Jain Education International पोषध प्रतिमा अब्रह्म वर्जन प्रतिमा स्वयम् आरम्भ वर्जन प्रतिमा उद्दिष्ट भक्त वर्जन प्रतिमा २. वय पडिमा ४. पोसह पडिमा ६. दिवा रत्ति बंभचेर पडिमा ८. आरंभ परिण्णाय पडिमा १०. उद्दिट्ठ भत्त परिण्णाय पडिमा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy