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________________ १०२ अध्यात्म-प्रवचन (ग) स्वदार तथा स्वपति मन्त्र भेद (घ) मृषा उपदेश (ङ) कूट-लेख करण स्थूल मृषावाद के पाँच अतिचार : १. बिना सोचे-समझे, बिना देखे-सुने किसी के विषय में भ्रान्त धारणा बना लेना। किसी पर मिथ्या कलंक लगाना। सज्जन को दुर्जन और दुर्जन को सज्जन कहना। सहसा अभ्याख्यान है। अभ्याख्यान का अर्थ है-मिथ्या दोष का आरोपण करना। सहसा का अर्थ है-बिना सोचे समझे। २. किसी की गुप्त बात को सबके समक्ष प्रकट करना। किसी व्यक्ति के जीवन के गुप्त रहस्य को प्रकट करना, घोर विश्वासघात है। रहसि का अर्थ है-एकान्त में, जो घटित हुआ है, उसका अभ्याख्यान अर्थात् उसका प्रकटीकरण कर देना, सब में प्रचारित कर देना। ३. स्व-दार-मन्त्र-भेद का अर्थ है-अपनी पत्नी के गुप्त रहस्य को किसी दूसरे के सामने प्रकट कर देना। स्व-पति-मन्त्र-भेद का अर्थ है-अपने पति की गुप्त बातों को दूसरों के सामने खोलकर रख देना। इससे परस्पर में दोनों के मनों में वैर-विरोध उत्पन्न होता है। यह एक घोर विश्वासघात होता है। धीरे-धीरे समग्र परिवार में क्लेश-कषाय की ज्वाला उत्पन्न हो जाती है। पति-पत्नी लज्जावश अपघात कर लेते हैं। ४. मृषा उपदेश का अर्थ है-मिथ्या कथन करना। किसी को सन्मार्ग से हटाकर उन्मार्ग पर ले जाना। बलि देने से देवी प्रसन्न होती है, मनोवाञ्छा की पूर्ति करती है। इस प्रकार का एवं अन्य अनेक प्रकारों से मिथ्योपदेश देना। इससे संसार की वृद्धि होती है, उसका क्षय नहीं होता। ५. झूठे लेख लिखना। झूठे दस्तावेज तैयार करना। झूठे बही-खाते तैयार करना। झूठे सिक्के बनाना और उन्हें बाजार में चलाना। यह कूट लेख-करण अथवा कूट-लेख क्रिया है। श्रावक को इन अतिचारों का परित्याग कर देना चाहिए। (ग) तृतीय अणुव्रत-स्थूल अदत्तादान-विरमण। इसमें चार शब्द हैं-विरमण अर्थात् विरति। सूक्ष्म का विपरीत स्थूल है। अदत्त का अर्थ होता है-जो दिया नहीं गया। आदान का अर्थ है-ग्रहण करना। स्थूल अदत्त के आदान का त्याग करना। यह अस्तेय व्रत है। स्तेय कहते हैं, चोरी करने को। अस्तेय कहते हैं, चोरी न करने को। श्रावक कभी किसी की चोरी नहीं करता। लेकिन वह सूक्ष्म चोरी से बच नहीं पाता। अतः वह स्थूल चोरी का ही परित्याग कर सकता है, सूक्ष्म का नहीं। स्तेय कर्म का अर्थ है-चोरी करना। अस्तेय कर्म का अर्थ है-चोरी न करना। दूसरों की सत्ता, दूसरों की संपत्ति और दूसरों की सम्पदा और दूसरों के अधिकार की वस्तुओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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