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________________ १०० अध्यात्म-प्रवचन वृत्तिच्छेद के प्रकार हैं। वृत्तिच्छेद के स्थान पर छविच्छेद पाठ भी होता है, उसका अर्थ हैकिसी का अंग भंग करना। हाथ, पैर, नाक और कान आदि काट लेना। ४. अतिभार-इसका अर्थ है, कि पशु तथा मनुष्य पर उसकी शक्ति से अधिक भार लाद देना। किसान लोग बैल पर, घोड़ा और ऊँट पर अधिक बोझ लाद देते हैं। घर के दास-दासी से उनकी शक्ति से अधिक काम लेना। ५. भक्त-पान निरोध-इसका अर्थ है-पशु को ठीक समय पर चारा-पानी नहीं देना। कर्मकरों के भोजन का समय हो जाने पर उनको भर पेट भोजन न देना। प्यास लगने पर भी उन्हें पानी पीने का अवकाश न देना। भूखे-प्यासे मनुष्य एवं पशु के भक्त-पान का निरोध करना। हिंसा के प्रकार : हिंसा का अर्थ है-किसी भी प्राणी को मन से, वचन से और काय से कष्ट पहुँचाना। हिंसा करना भी पाप है, हिंसा की प्रेरणा देकर दूसरे से हिंसा करवाना भी पाप है और हिंसक की हिंसा का समर्थन करना भी पाप है। हिंसा के चार प्रकार हैं १.संकल्पजा-मन में किसी के प्रति द्वेष, घृणा, वैर, विरोध तथा क्रोध और असूया के भाव रखना। जान-बूझकर किसी के साथ वैर एवं विरोध रखना। किसी पर आक्रमण कर देना। २.विरोधजा-विरोधी व्यक्ति की बिना कारण के हिंसा कर देना। उसे नष्ट-भ्रष्ट कर देना। उसके परिवार तक को गम्भीर एवं घातक चोट पहुँचाना। जान-बूझकर वैर-विरोध मोल लेना। ३. औद्योगिक हिंसा अर्थात् उद्योगजा-हिंसा-हिंसाप्रधान व्यापार करना। जिस व्यापार में पञ्च इन्द्रियों वाले जीवों की हिंसा होती हो। ४.आरम्भजा-जीवन-यापन के साधनों से तथा कार्यों से होने वाली हिंसा । हिंसा करने में दो स्थितियाँ होती हैं-एक जिसमें हिंसा की जाती है। दूसरी जिसमें हिंसा करनी पड़ती है। आक्रामक हिंसा की जाती है। जीवन-यापन के लिए मनुष्य को संरक्षण जन्या, उद्योग जन्या और आरम्भ जन्या हिंसा करनी पड़ती है। अपनी सुरक्षा करने में भी हिंसा होती है। धन्धे-पानी में भी हिंसा होती है। श्रमण-जीवन में तो हिंसा का सर्वथा त्याग होता है। परन्तु श्रावक-जीवन में हिंसा का सम्पूर्ण रूप से त्याग सम्भव नहीं है। अतः श्रावक-जीवन का विधान है, कि वह निरपराध प्राणी का वध न करे। सापराध व्यक्ति की हिंसा का प्रतिकार करना, उसका कर्तव्य हो जाता है। उसकी हिंसा का दोष श्रावक को नहीं लगता। यह श्रावक-जीवन की मर्यादा है। (ख) द्वितीय अणुव्रत-स्थूल मृषावाद विरमण। इसमें चार शब्द हैं-स्थूल, मृषा, वाद और विरमण। विरमण का अर्थ है-विरति । स्थूल का अर्थ है-सूक्ष्म का विपरीत भाव। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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