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३५६ | अध्यात्म प्रवचन
नहीं है । सत्य की रक्षा के लिए मैं निन्दा भी स्वीकार कर लंगा, अपमान भी स्वीकार कर लूंगा और अपयश भी सहन कर लूंगा, किन्तु सत्य को खोकर प्रशंसा, आदर, सत्कार, पूजा और प्रतिष्ठा मुझे किसी भी प्रकार ग्राह्य नहीं हैं। अपने सत्य की रक्षा के लिए, अपने धर्म की रक्षा के लिए और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए, सम्यक्दृष्टि आत्मा अपयश और निन्दा से भयभीत नहीं होता है। ___ सातभयों में सातवाँ भय है-अकस्माद्-भय । इसको आकस्मिक भय भी कहते हैं । अकस्माद्-भय एवं आकस्मिक भय का अर्थ यही है, कि वह भय, जिसकी मनुष्य कल्पना भी नहीं कर पाता है। इस भय की व्याख्या करते हुए कहा गया है, कि किसी प्रकार की दुर्घटना का घटना, घर पर चोर एवं डाकुओं का अचानक आक्रमण होना, जंगल से किसी जंगली जानवर का अचानक आक्रमण कर देना, और घर आदि का अचानक गिर पड़ना, अथवा आग लग जाना आदिआदि आकस्मिक भय के अगणित एवं असंख्यात प्रकार हैं। सम्यक दृष्टि आत्मा को अपनी आत्मा की अमरता एवं शाश्वतता पर विश्वास होता है । इसलिए यह अकस्मात् भय भी उसे कभी व्याकुल और परेशान नहीं करता है।
मैं आपसे यह कह रहा था कि सम्यक् दृष्टि आत्मा का व्यवहार और आचार कैसा होता है ? सम्यक् दृष्टि के जीवन में सम्यक दर्शन के आठ अंगों की अभिव्यक्ति होती रहती है और उसके जीवन में, सात प्रकार के भयों में से, किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता। आठ अंगों की साधना से और सात प्रकार के भयों की विमुक्ति से उसका जीवन सदा सुन्दर, मधुर और शान्त रहता है । वह निरन्तर अपने स्वरूप में ही स्थिर रहने का प्रयत्न करता है।
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