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३४४ | अध्यात्म प्रवचन
सफलता प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक होता है, कि उस पथ की विशेषताओं को भी समझा जाए। और उस पथ में आने वाली विघ्नबाधाओं को भी समझा जाए । विशेषताओं को समझने की अपेक्षा भी यह अधिक आवश्यक है, कि उस पथ में आने वाली रुकावट और अड़चन को भली प्रकार समझा जाए, जिससे कि मार्ग पर कदम बढ़ाते हुए प्रतिकूल स्थिति आने पर साधक व्याकुल न बने । जब तक स्वीकृत पथ में अचल आस्था न होगी, तब तक उसमें सफलता के बीज का आधान नहीं किया जा सकता । द्वादश व्रतों का वर्णन करने से पहले सम्यक्त्व का वर्णन इसी अभिप्राय से किया जाता है, कि इन व्रत तथा नियमों की सार्थकता तभी है, जबकि उनके मूल में शुद्ध सम्यक्त्व हो । सम्यक्त्व की अपार महिमा है, सम्यक्त्व की अपार गरिमा है और आत्मा के सम्यक्त्व गुण की अपार एवं अद्भुत शक्ति है ।
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