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________________ १९८ ) अध्यात्म-प्रवचन खण्ड के राजा पद्मोत्तर को कहलवाया कि-"कहिए, आपको शक्ति और भक्ति में से कौन-सा मागं पसन्द है ? यदि भक्ति मार्ग स्वीकार हैं, तो द्रौपदी को सादर ससम्मान वापस करो, क्षमा याचना करो और भविष्य के लिए आश्वासन दो कि फिर कभी ऐसा नहीं करूंगा। यदि आपको अपनी शक्ति पर अभिमान है और भक्ति-मार्ग स्वीकार नहीं है, तो अपनी सेना लेकर युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।" श्रीकृष्ण ने पद्मोत्तर राजा के लिए यह सन्देश अपने सारथी के द्वारा पत्र देकर भेजा। सारथी ने श्रीकृष्ण के पत्र को भाले की नोंक पर पिरोकर राजा पद्मोत्तर को दिया । पद्मोत्तर राजा ने क्रोध में भर कर पत्र पढ़ने के बाद सारथी से पूछा कि “कौन-कौन आए हैं और साथ में सेना कितनी है ?"सारथी ने बताया कि-"श्रीकृष्ण अकेले हैं और सेना के नाम पर पाँच पाण्डव ही उनके साथ हैं, जो द्रौपदी के पति हैं । इन छह पुरुषों के अतिरिक्त अन्य कोई सेना नाम की वस्तु नहीं है।" इस बात को सुनकर पद्मोत्तर हँसा और उपेक्षा के भाव से बोला-"वे मुझे क्या समझते हैं ? क्या उन्हें पद्मोत्तर की शक्ति का पता नहीं है ? क्या वे नहीं जानते कि पद्मोतर एक शक्तिशाली सम्राट् है ? संसार की अनेकानेक विजयी सेनाओं को मैं पराजित कर चुका हूँ। भला, ये छह प्राणी तो किस खेत की मूली हैं ?" राजा पद्मोत्तर को अपनी शक्ति का तथा अपनी विशाल सेना का बड़ा अहंकार था। वह अहंकार के स्वर में गर्जता ही गया कि “वीर क्षत्रिय अपनी शक्ति के बल पर ही अपनी तथा दूसरों को रक्षा करते हैं । तुम दूत हो, अपराध करने पर भी अवध्य हो, इसलिए मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ । जाओ, और अपने स्वामी से कह दो, कि पद्मोत्तर राजा युद्ध के लिए तैयार है।" श्रीकृष्ण का सारथी वापस लौटा, और उसने समग्र घटना-क्रम कह सुनाया। इधर बहुत शीघ्र ही राजा पद्मोत्तर बडी साज-सज्जा के साथ अपनी विशाल सेना को लेकर युद्ध के लिए मैदान में आ डटा । मैदान गजों की घनघटा से छा गया। उस समय ऐसा लग रहा था, मानों धरती पर काली घन-घटाएँ घुमड़ती चली आ रही हैं । शस्त्रों की चमक उसमें बिजली के समान कौंध रही थी। राजा पद्मोत्तर के सेनापति अपनी मोर्चाबन्दी में व्यस्त हो गए। श्रीकृष्ण ने यह सब स्थिति देखी, तो उन्होंने पाण्डवों से कहा-“पद्मोत्तर राजा अपने देश में है और अपने घर में है। अपने घर में एक साधारण-सा कुत्ता भी शेर बन जाता है । जब कि राजा पद्मोत्तर स्वयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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