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४३. जस्सत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वडत्थि पलायणं । जो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया ||
४४.
- उत्तराध्ययन १३/२७
जिसकी मृत्यु के साथ मित्रता हो, जो मृत्यु से कहीं भाग कर बच सकता हो, अथवा जो यह जानता हो कि मैं कभी मरूंगा ही नहीं, वही कल पर भरोसा कर सकता है ।
सद्धा खमं णे विणइत्तु रागं ।
विश्वज्योति महावीर
धर्म-श्रद्धा हमें राग (आसक्ति) से मुक्त कर सकती है ।
४५. सीहो व सद्देण न संतसेज्जा ।
- उत्तराध्ययन १४।२९
- उत्तराध्ययन २१ ।१४
सिंह के समान निर्भीक रहिए । केवल शब्दों (किसी की आवाजकशी) से न डरिए ।
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