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विश्वज्योति महावीर
कल्पना करिए, आपके पास एक प्रौढ़ व्यक्ति खड़ा है, तभी कोई एक युवक आता है और उससे पूछता है भैया ! किधर जा रहे हो ? दूसरे ही क्षण एक बालक दौड़ा-दौड़ा आता है और पुकारता है पिताजी ! मेरे लिए मिठाई लाना। तभी कोई वृद्ध पुरुष उधर आ जाता है और वह उस प्रौढ़ व्यक्ति को पूछता है बेटा ! इस धूप में कहाँ चले ? इस प्रकार अनेक व्यक्ति आते है, और कोई उसे चाचा कहता है, कोई मामा, कोई मित्र और कोई भतीजा ।
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आप आश्चर्य में तो नहीं पडेंगे ! यह क्या बात है ? एक ही व्यक्ति किसी का भाई है, किसी का भतीजा है, किसी का बेटा है और किसी का बाप है । बाप है तो बेटा कैसे ? और बेटा हे तो बाप कैसे ? इसी प्रकार चाचा और भतीजा भी एक ही व्यक्ति एक साथ कैसे हो सकता है ? ये सब रिश्ते-नाते परस्पर विरोधी हैं, और दो विरोधी तत्त्व एकमें कैसे घटित हो सकते हैं ? उक्त शंका एवं भ्रम का समाधान अपेक्षावाद में है । अपेक्षावाद वस्तु को विभिन्न अपेक्षाओं, दृष्टि बिन्दुओं से देखता है । इसके लिए वह ही का नहीं, भी का प्रयोग करता है । जो बेटा है, वह सिर्फ किसी का बेटा ही नहीं, किसी का बाप भी है । वह सिर्फ किसी का चाचा ही नहीं, किसी का भतीजा भी हैं । यही बात मामा आदि के सम्बन्ध में है । यदि हम ही को ही पकड़ कर बैठ जाएँगे तो सत्य की रक्षा नहीं कर सकेंगे । एकान्त ही का प्रयोग अपने से भिन्न समस्त सत्यों को झुठला देता है, जबकि भी का प्रयोग अपने द्वारा प्रस्तुत सत्य को अभिव्यक्ति देता हुआ भी दूसरे सत्यों को भी बगल में मूक एवं गौण स्वीकृति दिये रहता है । अतः किसी एक पक्ष एवं सत्यांश के प्रति एकान्त अन्ध आग्रह न रखकर उदारता पूर्वक अन्य पक्षों एवं सत्याशों को भी सोचना - समझना और अपेक्षा पूर्वक उन्हें स्वीकार करना, यही है महावीर का अनेकांत दर्शन !
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भगवान महावीर ने कहा- किसी एक पक्ष की सत्ता स्वीकार भले ही करो, किन्तु उसके विरोधी जैसे प्रतिभासित होने वाले (सर्वथा विरोधी नहीं) दूसरे पक्ष की भी जो सत्ता है, उसे झुठलाओ मत ! विपक्षी सत्य को भी जीने दो, चूंकि देशकाल के परिवर्तन के साथ आज का प्रच्छन्न सत्यांश कल प्रकट हो सकता है । उसकी सत्ता, उसका अस्तित्व व्यापक एवं उपादेय बन सकता
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