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विश्वशांति
छह
के
तीन सूत्र
१. अहिंसा:
भगवान् महावीर का अहिंसाधर्म एक उच्चकोटि का आध्यात्मिक एवं सामजिक धर्म है । यह मानव जीवन को अन्दर और बाहर-दोनों ओर से प्रकाशमान करता है । महावीर ने अहिंसा को भगवती कहा है । मानव की अन्तरात्मा को, अहिंसा भगवती, बिना किसी बाहरी दबाव, भय, आतंक अथवा प्रलोभन के सहज अन्तःप्रेरणा देती है कि मानव विश्व के अन्य प्राणियों को भी अपने समान ही समझे, उनके प्रति बिना किसी भेद-भाव के मित्रता एवं बन्धुता का का प्रेमपूर्ण व्यवहार करे । मानव को जैसे अपना अस्तित्व प्रिय है, अपना सुख प्रिय एवं अभीष्ट है यह सह-अस्तित्वरूप परिबोध ही अहिंसा का मूल स्वर है । अहिंसा 'स्व' और 'पर' की 'अपने' और 'पराये की,घृणा एवं वैर के आधार पर खड़ी की गई भेदरेखा को तोड़ देती है ।
अहिंसा का धरातल
अहिंसा विश्व के समग्र चैतन्य को एक धरातल पर खड़ा कर देती है । अहिंसा समग्र जीवन में एकता देखती है, सब प्राणियों में
वेतन्याको काराला
१ सव्वे पाणा पियाउया, सुहसाया ।आचारांग १।२।३
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