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________________ महावीर का जीवन दर्शन 53 जगमगाता है, जगमगाया नहीं जाता । बात यह है कि पुष्प और दीपक को अपने विस्तार के लिए कोई योजना नहीं बनानी पड़ती, अपने सौरभ एवं प्रकाश के प्रसार के लिए कोई उपक्रम नहीं रचने पड़ते । न विज्ञापन, न प्रचार ! न हल्ला, न शोरगुल ! जो कुछ विस्तार एवं प्रसार होता है, वह सब बिना आयास के, बिना प्रयास के होता है, स्वतः और सहज होता है । भगवान् महावीर का साधनोत्तर जीवनदर्शन लोककल्याण की दिशा में इसी प्रकार सहज भाव से विस्तार एवं प्रसार पाता गया । इस विस्तार एवं प्रसार में न कोई हठ था, न कोई आग्रह । न कोई आदेश था, न कोई अहम् । जो भी हुआ, सहज हुआ, अपने आप हुआ । आवेश के धक्के से होने वाली गति कुछ दूर चलकर क्षीण हो जाती है, किन्तु सहज भाव से जन जीवन में प्रबुद्ध होने वाली बोध की धारा अबाधगति से महाकाल की सीमाओं को, युगयुगान्तर को लाँघती चली जाती है । यही कारण है कि तब से लेकर अब तक महावीर का जीवनदर्शन कोटि-कोटि मनुष्यों के जीवनविकास में दिशानिर्देश का काम करता आ रहा है । सृजनात्मक क्रांति भगवान् महावीर ने जीवन के समग्र पहलुओं पर प्रकाश डाला है । उन्होंने व्यक्ति के सूक्ष्मातिसूक्ष्म तत्त्व से लेकर विश्व के विराट् एवं व्यापक तत्त्वों तक की बोधदृष्टि दी है । उनका उपदेश व्यक्ति को वर्तमान समाज से पृथक् करके किसी पारलौकिक सुख के लिए तत्पर करना नहीं था । उनका उपदेश मानव की अन्तरात्मा को प्रबुद्ध करने के लिए था, अंदर में सोये देवत्व को जगाने के लिए था, और था अपने समग्र उचित दायित्वों को शान के साथ पूरा करने के लिए । उन्होंने धर्म एवं समाज के परम्परागत नियमोपनियमों को, पहले से चले आ रहे पुराने मूल्यों को, जो अनुपयोगी हो गए थे, एक सशक्त क्रांति लाकर तोड़ा, और तत्कालीन जनजीवन के लिए उपयोगी नये मूल्यों को स्थापित किया । परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि उन्होंने उस युग की परम्परागत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001336
Book TitleVishwajyoti Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2002
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Sermon
File Size5 MB
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