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अन्तर्मुखी
चार
साधनापद्धति
महावीर की साधना : अन्दर की साधना
आज तक ढाई हजार वर्षों की लम्बी अवधि में महावीर के सम्बन्ध में जो लिखा गया है, उसमें उनकी साधना का अन्तरंग रूप बहुत कम चर्चितवर्णित हआ है । जबकि उनके लोक कल्याणकारी उपदेश की तरह ही उक्त अन्तरंग साधना पद्धति का विश्लेषण भी अतीव आवश्यक है । महावीर बाहर में उतने नहीं थे, जितने कि अन्दर में थे । अतः यह उनके अन्दर का जीवन ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है और इसी अन्तरंग जीवन के सम्बन्ध में प्राचीन लेखक प्रायः मौन हैं । फिर भी आज हम साधनाकाल की उन विभिन्न घटनाओं के आधार पर उनकी अन्तरंग साधनापद्धति की कुछ परिकल्पना कर सकते हैं ।
साधना का बाह्याकार : आचार __ महावीर अन्दर और बाहर दोनों तरह से परिग्रहमुक्त होकर प्रव्रजित हुए थे । उनके पास धन-संपत्ति के नाम पर कुछ नहीं था । जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी तो कोई साधन नहीं था । हजारों सेवकों से घिरा रहने वाला राजकुमार, जब स्वयं दीक्षित होकर सत्य की खोज में एकान्त सूने वनों की ओर चला, जहाँ कदम-कदम पर मौत नाचती फिरती
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