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________________ साधना के अग्निपथ पर | Jain Education International तीर्थंकर महावीर 1 भूमिका कुछ लम्बी हो गई, पर कोई बात नहीं । जो अभी कथ्य क्षेत्र में है, उसकी पृष्ठभूमि के लिए इतना कुछ आवश्यक भी था । अध्यात्म साधना के क्षेत्र में अनेकानेक साधक हो गए हैं, जिनकी जीवन गाथाएँ आज भी साधकों के लिए प्राणवान् सन्देश का उद्घोष कर रही हैं । हमारे वे महान् साधक क्या थे, वे किस पथ पर आगे बढ़े, उनकी यात्रा कैसी और क्या रही, आखिर उन्होंने कब, कैसे, क्या पाया ? उक्त सब प्रश्नों का समाधान उन प्राचीन जीवनगाथाओं से सहज ही मिल सकता है । यह ठीक है, कि वे पुरानी जीवनगाथाएँ काल की बदलती हुई धूलभरी हवाओं से काफी धुँधली हो गई हैं, उन पर श्रद्धा-भक्ति के नाम पर इधर-उधर के अन्धविश्वासों की बहुत अधिक धूल जम चुकी है, कुछ तो अपना मूल अर्थ ही खो बैठी हैं । परन्तु सत्यदृष्टि का साधक यदि अपने शुद्ध विवेक से कुछ भी काम ले, शब्दों के अन्दर छिपे हुए मूल भाव को ग्रहण करने का प्रयत्न करे और साम्प्रदायिक मान्यताओं के अभिनिवेश से मुक्त होकर शुद्ध सत्य का दर्शन करना चाहे तो आज भी दिव्य जीवन के निर्माण के लिए उन जीवनगाथाओं से महत्त्वपूर्ण दिशाबोध मिल सकता है । I दो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001336
Book TitleVishwajyoti Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2002
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Sermon
File Size5 MB
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