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पर्युषण-प्र
-प्रवचन
है वही सुकोमल भावना सोमल के प्रति है । उस क्षण के देवता ने मन की सारी झाल बुझा दी, काम क्रोध पर विजय पा ली ।
मन की झाल को शान्त करना सहज नहीं । बड़े-बड़े योगिराज भी असफल हो जाते हैं । उसे बुझाने के लिए क्षमा की, सहिष्णुता की शक्ति चाहिए । आज तो जरा-जरा सी बात पर मन में विकारों की झालें उठती हैं । दूकान पर जाने की तैयारी में है, भोजन में चन्द मिनट की देर हुई कि पत्नी पर बरस पड़े । तुम समय पर भोजन भी नहीं बना सकतीं ! हमें दूकान पहुँचने में देर हो रही है । आपने पीने को पानी माँगा और उधर बच्चा रो रहा है । वह उसे चुप करके पानी ला रही है, पर आप दो चार मिनट भी सन्तोष नहीं रख पाते । एक दम चिल्ला उठते हैं मैं तो प्यास से मरा जा रहा हूँ और तुम लगी बच्चे को खिलाने ! तो आप एक मिनट की देरी भी नहीं सह सकते । पत्नी को, बच्चों को आपके आदेश का तुरन्त पालन करना चाहिए, वह बच्चे को खिला नहीं सकती, रोते हुए बच्चे को पुचकार नहीं सकती, यदि आपका काम है तो । इसी तरह बाजार में किसी ने कुछ कह दिया तो एक दम पारा चढ़ गया और जोश में तन कर गरज पड़े–“किससे बात कर रहे हो ? जानते नहीं, मैं कौन हूँ ?” कषाय
हाँ, तो मन में कषायों की आग जल रही है और उसकी लपटों से व्यक्ति जल रहा है, समाज जल रहा है, संघ जल रहा है, जाति--बिरादरियाँ जल रही हैं, पंथ एवं संप्रदाय जल रहे हैं । इसी मन की ज्वालाओं के कारण महाभारत का विनाशकारी युद्ध हुआ । इसी मन की ज्वाला में हिटलर, मुसोलिनी और नेपोलियन को जलते देखा । इसी मन की ज्वाला में दो-दो विश्वयुद्ध होते देखे । इसी मन की ज्वाला ने बम, एटम बम, अणु बम और उद्जन बम का निर्माण दिया, विषाक्त अणु आयुधों का संचय किया ।
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बाहर की आग इतनी भयंकर नहीं है । वह तो एक बार जल कर कुछ देर में बुझ जाती है । किन्तु मन में लगी यह आग निरन्तर जलाती रहती है । दिन में लड़ते हैं और रात में भी झगड़ते हैं । जागते हुए संघर्ष करते हैं और सोते हुए भी युद्ध के सपने देखते हैं । नींद में भी बरगलाते रहते हैं, गालियाँ बकते रहते हैं । एक क्षण के लिए भी मन में चैन नहीं, शान्ति नहीं, आराम नहीं । मन की आग बढ़ रही है और हम
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