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________________ पर्युषण-प्रवचन परिस्थितियों के बीच से वे अपना मार्ग बनाते हुए आगे बढ़ते हैं । व्यक्ति जब प्रतिकूलता से जूझता है तो जरूरी नहीं कि उसकी पहली लड़ाई ही विजय का द्वार बन जाए, असफलता और अभाव भी आते हैं किन्तु उनसे जो नहीं घबराता है वह एक दिन अवश्य ही विजय प्राप्त करता है इसीलिए कहा गया है कि तुम हारते हो तो हार से घबराओ मत । तुम्हारी हार और हर हार है जीत । यदि हार के आक्रमण से घबराए नहीं तो विजय अवश्य ही तुम्हारे चरणों में आएगी । एक गरीब लड़का, जिसे गरीबी बाप-दादाओं से विरासत में मिली थी, किसी बड़े सेठ को सामने मिला तो उससे जय जिनेन्द्र किया । सेठ ने लड़के का साहस, उत्साह और प्रतिभा देखी तो उस लड़के को अपने साथ ले लिया । घर पर आकर उससे बातचीत की तो मालूम हुआ इसके मन में सचमुच एक दर्द है, गरीबी के बन्धनों को तोड़ने की लगन है । सेठ ने उसे अपने घर पर रख लिया, और एक नाव अन्न से भरकर कहा कि इसे ले जाओ और बेचकर कमाओ । यदि इसमें कुछ नुकसान भी हुआ । तो मेरा ही होगा तुम घबराना मत । वह लड़का नाव लेकर थोड़ी दूर चला कि नाव नदी में डूब गई, लड़का भी डूब रहा था कि तत्काल मल्लाह ने उसे बचा लिया । लड़के को माल डूबने का बहुत भारी दुःख हुआ, वह घबरा कर रोते सिर पीटने लगा और नदी में कूदना चाहता था कि मल्लाह ने उसे बचा लिया, पकड़ कर सेठ के समक्ष जब उसे लाया गया तो सेठ ने उसे समझाया, नुकसान तो मेरा हुआ है ? तुम रोते क्यों हो ? ऐसे रोने से व्यापार नहीं हो सकता । जाओ कोई चिन्ता मत करो, इस बार दो नाव ले जाओ । लड़के ने हिम्मत करके इस बार दो नाव अन्न के भरे और चल पड़ा, भाग्य संयोग कि वही दोनों नाव फिर नदी में डूब गए । इससे लड़का अपना सिर पीटने लगा, अपने को और दरिद्र कहकर कोसने लगा । वह सेठ के पास लौट कर मुँह दिखाने को भी भयंकर पाप समझने लगा, किन्तु मल्लाह ने इस बार भी उसे पकड़ कर सेठ के सामने खड़ा कर दिया । लड़का फूट-फूट कर रोने लगा । उसको रोते देखकर सेठ ने कहा, तुम रोते क्यों हो ? नाव डूब गई तो क्या हुआ ? तुम्हारा भाग्य तो नहीं डूबा, प्रयत्न करना मनुष्य का कर्तव्य है, सफलता असफलता के बारें में उसे चिन्ता नहीं करनी चाहिए । इस प्रकार घबरा गए तो जीवन के महासागर को किस प्रकार पार करोगे । सेठ ने इस बार - ६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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