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________________ क्रान्तिकारी महापुरुष : श्रीकृष्ण तक तरंगित रहेगा । श्रीकृष्ण के जीवन में कोई ऐसा वैशिष्ट्य है, जो उन्हें दुनियां की समस्त विभूतियों से अलग कर देता है । उनका वैशिष्ट्य समझने के लिए उनके वैभवशाली महल को मत देखिए, उनकी महान् यादव जाति को मत देखिए, उनके सार्वभौम सम्राट होने में भी उनकी महानता ढूँढ़ने का प्रयास मत कीजिए, उन्हें देखना है तो उनका चरित्र देखिए । उनके जीवन में कुछ ऐसे गुणों का समन्वय था, जो एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी जान पड़ते हैं और यही समन्वय उनके व्यक्तित्व और चरित्र का वैशिष्ट्य था । वे ऐसा रंग लेकर आए, जो सारी धरती और आसमान पर सारी मानव-जाति और सृष्टि की रचना पर छा गया । स्नेह के प्रतीक श्रीकृष्ण मुरलीधर थे । हाँ, मुरलीधर । उनकी मुरली ने सारे गोकुल को तरंगित कर दिया था । लोगों ने कहा- "मधुराधिपतेः सर्वं मधुरम्" केवल उनकी बांसुरी ही मधुर नहीं थी, बल्कि उनके चरित्र का कण-कण माधुर्य रस से ओत-प्रोत था । उनकी बांसुरी स्नेह और आकर्षण का प्रतीक बन गई । लेकिन हम जानते हैं कि जहाँ उनके एक हाथ में बाँसुरी थी, वहाँ दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र भी घूमता था । सुदर्शन चक्र के तेज से अन्याय करने वालों की आँखें चौंधिया जाती थीं । श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र धरती पर से अन्याय और शोषण को नेस्तनाबूद करने के लिए ही था । शोषण करना जितना पाप है, गुनाह है, उतना ही शोषण को और अन्याय को सहन करना भी पाप है । किसी को डराओ मत, लेकिन किसी से डरो भी मत । श्रीकृष्ण ने यही संदेश दिया । गीता कहती है - “यस्मान् नोद् विजते लोको लोकान् नोद् विजते यः ।" हजारों वर्षों के बाद भी आज तक गीता के स्वर भारतीय कंठों से निरन्तरं फूटते रहते हैं । गांधी ने भी गीता का सहारा लिया । और कहा-"स्वयं अभय बनो और विश्व को अभय बनाओ । जहाँ कहीं भी भय है, आतंक है, अन्याय है, उससे संघर्ष करो । उसे सहो मत । उसे समाप्त करो । दूसरों को गुलाम बनाना जितना पाप है, दूसरे का गुलाम बने रहना भी उतना ही बड़ा पाप है । इसलिए गुलामी की जंजीरों को तोड़ डालो ।" यही गीता की प्रेरणा थी । हम देखते हैं कि श्रीकृष्ण ने अपे निकटस्थ और आत्मीय जनों को भी कर्तव्यविमुख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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