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पर्युषण-प्रवचन
श्रीकृष्ण का जीवन भारतीय जीवन में इतनी गहराई से बैठ चुका है कि कोई भी ताकत उसको उखाड़ नहीं सकती । राज्य और राजा बदले तथा बदलते रहेंगे, किन्तु श्रीकृष्ण के प्रति भारतीय मानस की श्रद्धा नहीं बदल सकती ।
गाँव में शादी के अवसर पर मुसलमान लड़कियाँ भी अपनी सखियों के साथ मिलकर जब लोक-गीत गाती हैं तो कहती हैं कि यदि हमारा विवाह हो तो हमें कृष्ण कन्हैया जैसा सुन्दर और प्रेमी पति मिले । ऐसे लोक-गीत इस बात के द्योतक हैं कि श्रीकृष्ण केवल धर्मशास्त्र की ऊँचाइयों में रहने वाले महापुरुष ही नहीं थे, बल्कि जीवन का स्पर्श करने वाले व्यावहारिक पुरुष थे । उनकी गाथा केवल पुराणों को ही सुशोभित नहीं करती, केवल सूरदास और कबीर के काव्यों को ही तरंगित नहीं करती, किन्तु लोक-गीतों के रूप में भी वह रम गई है । और जैन, बौद्ध, मुसलमान, हिन्दू आदि का भेद किए बिना सर्वत्र व्याप्त हो गई है । इसीलिए हर धर्म की बालाएँ अपने माता-पिता से श्रीकृष्ण जैसा पति माँगती हैं । जाहिर है कि हमारी यह व्यापक और श्रद्धालु भावना मरकर भी नहीं मरी । सब कुछ बदला, लेकिन हमारा पल्ला खाली नहीं हुआ । हमारे पास जीवन की कुछ ऐसी थाथियाँ हैं कि हम उन पर गर्व करते हैं, जहाँ कहीं भी हम रहें, हमारे मन में भारतीय संस्कृति का झरना बहता ही रहेगा और उस संस्कृति का एक-एक शब्द हमारे लिए गौरव का शब्द रहेगा । राजा या लोकपुरुष
श्रीकृष्ण राजा नहीं थे । वे लोकपुरुष थे । कितने ही व्यक्ति राजवंश में पैदा होते हैं, राज्य करते हैं और चले जाते हैं। उन्हें कोई याद तक नहीं करता । उन्हें कोई जानता तक नहीं । आज हम देखें कि इतिहास में कितने राजा हुए । पर हम किस-किस का कीर्तन करते हैं, किस-किस की गौरव-गाथाएँ गाते हैं, किस-किस की भक्ति और पूजा करते हैं । हम श्रीकृष्ण की पूजा इसलिए नहीं करते कि वे एक बहुत बड़े राजा थे, इसलिए भी नहीं करते कि उन्होंने बड़े साम्राज्य का निर्माण किया, इसलिए भी नहीं करते कि वे युद्ध में विजयी हुए । ये सब तो तुच्छ आधार हैं ।
ये तो ऐसे क्षुद्र स्रोत हैं, जो थोड़ी-सी धूप पाकर सूख जाते हैं । किन्तु श्रीकृष्ण का जीवन प्रेरणा का वह अगाध सागर है, जो युग-युगान्त
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