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क्रान्तिकारी महापुरुष : श्रीकृष्ण
आज कृष्णाष्टमी है ! श्रीकृष्ण का जन्म-दिन !
दिन आते हैं और चले जाते हैं, पर किसी-किसी दिन में कुछ ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं जो उस दिन को भी अमर बना देती हैं । आज से हजारों वर्ष पहले एक अष्टमी आयी और वह अमर हो गई । हम लोग आज भी उस अष्टमी की याद करते हैं ।
जन्म
कंस के कारागृह में इसी अष्टमी के दिन एक महापुरुष जन्म लेता है । एक ऐसा महापुरुष, जो अपने प्रकाश से युग-युग तक जनचेतना को आलोकित कर देता है । उस महापुरुष के जन्म के समय सर्वत्र दुःख और अन्धकार फैला था । मौसम भी भयावना था । आकाश में काली घटाएँ छायी थीं । बिजलियाँ कड़क रही थीं । प्रचंड वर्षा हो रही थी । सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में भी भयानक तूफान था । कंस के क्रूर शासन की काली घटाएँ छायी थीं और जरासन्ध के अत्याचार की बिजलियाँ कड़क रहीं थीं, दुर्योधन और शिशुपाल जैसी मदान्ध शक्तियाँ भारतीय क्षितिज पर छाने जा रही थीं । "जिसके पास शक्ति है. वही इस धरती का मालिक है और शक्तिहीन को जीने का भी अधिकार नहीं है" इस सिद्धान्त की भयानकता से आम जनता संत्रस्त थी । कहने का आशय यह है कि उस समय प्रकृति भी तूफान से भरी थी और समाज तूफान से भरा था । इस अन्तर्बहिर तूफान के बीच श्रीकृष्ण का जन्म होता है । सहसा एक प्रकाश फैलता है । चारों ओर अचानक हर्ष की लहर दौड़ती है । कारागृह के लौह-द्वार हवा के एक हल्के झोंके से ही खुल पड़ते हैं ।
श्रीकृष्ण जिस विकट परिस्थिति में जन्म लेते हैं, वह देखकर सचमुच मन काँप उठता है । बहुत से लोग कहते हैं कि हमें बहुत ही बुरी हालत में जन्म मिला है । चारों ओर बन्धन, अभाव और कष्ट है । इन कष्टों के बीच में कैसे उद्धार हो ? यदि हमें कुछ सहज अनुकूलताएँ मिली होती तो हम समाज के लिए कुछ कर पाते । इस प्रकार मनुष्य जन्म से ही अनुकूलताएँ
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