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वैराग्य मूर्ति : गौतम कुमार
भी योद्धा और वीर थे, उन सबको एकत्रित किया । श्रीकृष्ण ने यादवों की उस विशाल सभा में कहा - " हम सब यहाँ ब्रजभूमि में रह कर जरासन्ध की विशाल सेनाओं का मुकाबला नहीं कर सकते । यदि हम यहाँ पर रहे तो यादव जाति का संरक्षण नहीं कर सकेंगे । जरासन्ध की विशाल सेना के सामने हमारी सेना नगण्य है । यहाँ रह कर हम यादव जाति के संहार को रोक नहीं सकते । जय और पराजय का प्रश्न बड़ा विकट है ।" उस विशाल सभा में से एक पुरोहित ने, जिसके अन्तर मन में यादव जाति के प्रति अनन्य प्रेम था और जो पिंगल शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र का पारंगत विद्वान माना जाता था । उसने कहा
" ब्रजभूमि में ही यदि यादव जाति युद्ध करेगी तो विजय प्राप्त कर सकती है, परन्तु बलिदान अधिक देना होगा । यादव जाति का सर्वनाश भी सम्भव है । अतः ब्रजभूमि को छोड़ दिया जाये और अन्यत्र कहीं किसी सुरक्षित स्थान की खोज की जाये । अन्य सभी विकल्पों को छोड़ दिया जाये । तभी यादव जाति एक विशाल सेना के रूप में खड़ी रह सकती है । शत्रु को पराजित कर सकती है ।" परन्तु यादवों के सामने सबसे बड़ी समस्या दो थीं - एक अपने पुराने वैभव को छोड़ना और दूसरे नये स्थान पर जाकर अपना साम्राज्य जमाना । बहुत से लोग अपने पुराने वैभव को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे । पर श्रीकृष्ण ने कहा - " जीवित रहेंगे तो फिर साम्राज्य बना लेंगे ।" अतः यहाँ से चलने में ही हम सबका हित है " को विदेशः सविद्यानाम् " विचारशील के लिए सारा संसार ही अपना है । "स्वदेशो भुवन त्रयम्" समग्र विश्व ही अपना घर है । मनुष्य अपने बल पराक्रम और अध्यवसाय से सब कुछ कर सकता है, सब कुछ पा सकता है । श्रीकृष्ण के कहने से यादव लोग चलने को तैयार हो गये । व्रजभूमि को छोड़ कर, सौराष्ट्र में जाकर उन्होंने अपने नये साम्राज्य की आधार शिला रखी । द्वारिका नगरी का निर्माण किया गया । श्रीकृष्ण के नेतृत्व में यादव जाति ने वहाँ पर भी नया वैभव प्राप्त किया और सर्व प्रकार की सम्पन्नता प्राप्त की । भारतीय इतिहास में यादव जाति का गौरवपूर्ण स्थान रहा है ।
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