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________________ पर्युषण-प्रवचन का वर्णन उपलब्ध होता है । प्रथम वर्ग से लेकर पञ्चम वर्ग तक नेमि-युग है और षष्ठ से लेकर अष्टम वर्ग तक महावीर-युग है । यह कहानी उस युग की है, जब भगवान नेमिनाथ इस धरती तल पर विश्वात्माओं को आत्मकल्याण की देशना कर रहे थे और वासुदेव श्रीकृष्ण द्वारिका नगरी में राज्य कर रहे थे । द्वारिका नगरी सर्व प्रकार से सुन्दर एवं समृद्ध थी । वह बारह योजन लम्बी और नव योजन चौड़ी थी । स्वयं धनपति कुबेर ने उसकी रचना की थी । उसका परकोटा सुवर्ण का था और उसके कंगरे पाँच वर्ण के रत्नों से जड़ित थे । वह अत्यन्त रम्य और देवनगरी अलका से सदृश थी । द्वारिका नगरी दर्शनीय अभिरूप और प्रतिरूप थी । द्वारिका नगरी के उत्तर-पूर्व के दिशा भाग में रैवत पर्वत था, उस पर एक नन्दन वन था, उसमें एक यक्षायतन था, जो चारों ओर से एक सुन्दर उपवन से आवृत्त था । उसके मध्य में एक अशोक वृक्ष था । एक बार विहार करते-करते भगवान अरिष्टनेमि द्वारिका पधारे और रैवत चल पर नन्दनवन में अशोक वृक्ष के नीचे समवसरण लगा, जिसमें द्वारिका नगरी के हजारों लोग भगवान का दर्शन करने और देशना सुनने आने-जाने लगे । भगवान के पधारने से नगरी की जनता को आत्मकल्याण की प्रेरणा मिली । वैराग्यमूर्ति गौतम द्वारिका नगरी में अन्धकवृष्णि राजा थे और धारिणी उनकी रानी थी । एक बार रात्रि में अपनी शय्या पर सोती हुई रानी धारिणी ने एक शुभ स्वप्न देखा । भगवती सूत्र में वर्णित महाबल कुमार की तरह से ही यहाँ पर गौतम का जन्म, बाल्य-काल और कला-शिक्षा का क्रम एवं वर्णन समझ लेना चाहिए । संक्षेप में कथा-सूत्र है-"जोबण पाणिगाहणं कन्ता पासाय भोगाय ।" यौवन-काल आने पर गौतम का विवाह किया गया । उसके रहने के लिए सुन्दर-सुन्दर प्रसादों का निर्माण किया गया, जिनमें रहकर वह अपना जीवन सुख में व्यतीत करने लगा । भोग और विलास की रंगीन दुनिया में वह लीन हो गया । भोगवाद की मत्त करने वाली मधुर मदिरा में वह इस प्रकार बेभान हो गया कि उसे यह भी पता नहीं था; सूर्य किधर उदय होता है और किधर अस्त होता है । एक बार भगवान् अरिष्टनेमि विहार करते-करते द्वारिका नगरी पधारे । रैवतगिरि के नन्दनवन में उनका समवसरण लगा । द्वारिका - - ४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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