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________________ पर्युषण-प्रवचन भूलें भी प्रवेश कर गई हैं । मैं कहता हूँ कि आज हमारे कुछ भाई या आलोचक इसमें हजार-हजार भूलें पेश करते हैं, उन्हें मैं स्वीकार करता हूँ । मैं स्वयं भी उन आलोचकों में से हूँ जो सामाजिक जीवन की छोटी-छोटी और बड़ी-बड़ी भूलों पर इधर-उधर हमेशा चोट करते रहते हैं और उसके सम्बन्ध में कभी-कभी उपहास की भाषा में भी रोष प्रकट करते हैं । पर मैं कहूँ कि यह जीवन का आज का हर्ष, उल्लास और मन की जो तरंगें हैं, त्याग और तपस्या के प्रति स्नेह और श्रद्धा की जो तरंगें हैं, आखिर इन तरंगों को भी कैसे झुठलाया जा सकता है । इनको तो कम से कम स्वीकार करना ही पड़ेगा । हाँ, ब्याज गलत चल रहा है पर मूल गलत नहीं है । आप मूल के लिए अपनी भावनाओं को अर्पण करिए । इस बात को समझने की जरूरत है । हमारे कुछ विचारक और कुछ आलोचक, ब्याज में गड़बड़ी आ रही है, तो मूल को ही खत्म करने को तैयार हैं । वस्त्र मैला हो रहा है तो फाड़ने को तैयार हो रहे हैं । पर यह विचार नहीं करते कि वस्त्र तो वस्त्र ही है. उससे हमारा झगड़ा नहीं है, पर उस पर जो मैल आ गया है, कुछ मिलावट आ गई है, उससे, उस मैल से संघर्ष करना है । तो मैल को छुटाइए, उसे साफ कीजिए । और वस्त्र तो आपका तब भी वही था और अब भी वही है । वह वस्त्र बड़ा उपयोगी है मैल के कारण उसे फेंक कर नंगा होने की कोशिश मत कीजिए । आज के हमारे धर्म-सिद्धान्तों में, हमारे पर्यों में, रीति रिवाजों में, सामायिक पौषध और सूत्र-स्वाध्याय में, जीवन के कण-कण में कुछ विकार प्रविष्ट हो चुके हैं, कुछ त्रुटियाँ आ गई हैं तो इन भूलों की जानकारी रखना आपका कर्तव्य है । दूषणों के सम्बन्ध में विचार अवश्य कीजिए पर मूल वस्तु को न छोड़ बैठिए । आप दूषणों और विकारों को साफ कीजिए, बुराइयों को समाप्त कीजिए, लेकिन कहीं बुराइयों, विकारों और दोषों से संघर्ष करते-करते यह मत कहिए कि यह सब पाखण्ड ही है । यदि आप इतने दूर चले गये तो इसका मतलब होगा कि आप आमूलतः सारे जीवन से ही इन्कार कर रहे हैं । पर्व का अर्थ है आनन्द के मंगल क्षण । संसार भर के पर्यों का यदि आप हिसाब लगाएँ तो भारतवर्ष ही एक ऐसा देश आपको मिलेगा जो पर्यों का देश कहा जा सकता है । यहाँ सामाजिक और धार्मिक पर्व इतने अधिक हैं, जिनकी गणना करना आसान नहीं । पर्यों के सम्बन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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