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________________ हमारे प्रेरणास्रोत : इतिहास के उज्ज्वल पृष्ठ उस पर भूत लग गया हो फिर मदिरा भी पीली हो तो बस क्या कहना ? रहनेमि आपे से बाहर होकर राजुल के निकट आया । राजुल ने देखा तो वह सन्न रह गई, काटो तो खून नहीं । झट से शरीर पर वस्त्रों को लपेटा और नारी-सुलभ लज्जा और भय के कारण थर-थर कांप उठी । रहनेमि राजुल के समक्ष वासना पूर्ति का अनुचित प्रस्ताव करता है और राजुल उसका करारा और विवेकपूर्ण उत्तर देती है, दोनों का वह संवाद आज भी उत्तराध्ययन सूत्र में सुरक्षित है । आज भी राजुल और रहनेमि का वह सम्वाद नारी और पुरुष की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता हुआ सा लगता है । रहनेमि एक यादव राजकुमार था, जिसने अपने यादव साम्राज्य के सिंहासन की जड़ों को गहरी बनाने के लिए कितनी ही लड़ाइयाँ लड़ीं, संसार को अपने पौरुष का चमत्कार दिखा कर और भोग विलास के वातावरण से घिरा रहा । परन्तु भगवान अरिष्टनेमि की वाणी को सुनकर जीवन का प्रवाह बदल गया, और वह भोग से योग एवं शासन से संन्यास की ओर बढ़ गया । उसने शरीर को खपाया मन को तपाया और साधना की ज्वाला में अपने आपको होम दिया, किन्तु वही एक दिन राजुल के रूप लावण्य को देखकर अपने को भूल गया । अपना ध्येय एवं अपनी साधना को भुलाकर वह वासना के प्रवाह में बह गया । पुराने सुप्त संस्कार पुनः जग गए । उसके अन्दर का वासना-सर्प मरा नहीं था, बल्कि केवल मूर्छित होकर सुषुप्त दशा में पड़ा था, जो निमित्त पाकर पुनः फुकार मार कर खड़ा हो गया । रहनेमि ने राजुल से कहा कि-"क्यों संसार छोड़ती हो ? आओ हम दोनों फिर से गृहस्थ जीवन में लौट चलें और मदभरे यौवन काल को सुखोपभोग में बिताएँ ।" प्रत्युत्तर में राजुल ने रहनेमि को जिस निर्मल वैराग्य धारा से समझाया वह सम्वाद आज भी दशवै कालिक उत्तराध्ययन आदि सूत्रों में विद्यमान है । जब रहनेमि पर उसके प्रशान्त मधुर उपदेश का कोई असर नहीं हुआ तो राजुल ने अन्ततः उसके क्षत्रियत्व के मर्म पर चोट करते हुए कहा - अहं च भोग रायस्स, तं चसि अंधग वण्हिणो, माकुले गंधणा हो मो, संजमं निहुओ चर ? जानते हो, तुम कौन हो ? तुम्हारी नसों में किसका रक्त प्रवाहित - २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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