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हमारे प्रेरणास्त्रोत : इतिहास के उज्वल पृष्ठ
संसार का प्रत्येक समाज, राष्ट्र और धर्म अपने इतिहास और पूर्वजों के पद चिन्हों पर और उनकी स्मृतियों के प्रकाश में अपने पथ को आलोकित करता हुआ उस पर आगे बढ़ता रहता है । एक विचारक ने कहा है कि यदि किसी जाति, समाज या राष्ट्र को नष्ट करना हो, उसे अपनी गौरव-गरिमा को खत्म करके दुर्भाग्य के दुर्दिन देखने के लिए सर्वनाशक महागर्त में गिराना हो तो और कुछ करने की आवश्यकता नहीं, बस एक ही काम करना है कि उसका इतिहास उससे छीन लिया जाय, पूर्वजों के स्मरण पर रोक लगा दी जाय अथवा इतिहास के पृष्ठों पर अंकित पूर्वजों के शौर्य, त्याग एवं गौरव मण्डित कथानकों, चरित्रों एवं वचनों को विपरीत ढंग से उपस्थित किया जाय । फिर वह देश, समाज, राष्ट्र या धर्म अपने आप पतन की ओर अग्रसर हो जायेगा । इतिहास की उदात्त भावनाएँ ___ भारतवर्ष जब तक अपने पूर्वजों को नहीं भूला, अतीत की गौरव गाथाओं को याद करता रहा, तब तक दुःख, दैन्य, विपत्तियों एवं आक्रमणों के समक्ष उसने कभी घुटने नहीं टेके । अपने इतिहास की स्मृतियों के बल पर वह पुनः नवीन, शौर्य, वीर्य और पराक्रम को प्राप्त करके सामर्थ्यवान् बना रहा, जूझता रहा और दुनियाँ को अपने प्रदीप्त तेज से आलोकित करता रहा । भारत ने अपने पूर्वजों, माताओं, बहनों, गुरुओं, तीर्थकरों आदि की उज्ज्वल स्मृतियों को संजोकर रखा है, यही उसकी सबसे बड़ी निधि है । धर्म और समाज को जीवित रखने वाली वही अमर संजीवनी बूटी रही है । जब भी धर्मों, परम्पराओं और समाज में विकृतियाँ आईं, भूलें हुईं, तभी अतीत की स्मृतियों ने उस अंधकार को मिटाया, विकार का परिष्कार करके उसके रक्त में पवित्रता का संचार किया, और इतिहास के आलोक में अपना मार्ग निश्चित किया ।
जब कोई देश या राष्ट्र, समाज या धर्म हीन भावनाओं का शिकार हो जाता है, वह अपने महत्व को भूल जाता है, उसे निरन्तर यह सुनाया जाय कि तू कुछ नहीं है, तुझमें कोई सामर्थ्य नहीं है, तेरे पूर्वजों ने कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं किया, तो अवश्य ही उस देश, राष्ट्र, जाति, समाज
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