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पर्युषण-प्रवचन
'भावना - योग' की साधना पर विशेष बल देना चाहिए । भावना - शुद्धि से ही पर्व की अराधना सम्यक् प्रकार से होगी ।
जीवन की परिभाषा
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जीवन की परिभाषा करते हुए एक दार्शनिक ने जीवन के तीन प्रकार बताए हैं- आसुरी - जीवन, दैवी जीवन और अध्यात्म - जीवन । जो जीवन भोग, विलास और काम- तृष्णा पर आधारित होता है, उसे 'आसुरी - जीवन' कहते हैं । भोगवादी जीवन - आसुरी जीवन है । इसके मूल में इच्छा, कामना और वासना रहती है । इच्छा की प्यास, एक ऐसी प्यास है, जो कभी बुझती नहीं है । सिसरो कहता है — “ The thirst of desire is never filled, nor fully satisfied. — इच्छा की प्यास न कभी बुझती है, और न कभी पूरी हो पाती है ।" अतः आसुरी - जीवन को कभी सुख और शान्ति नहीं मिल पाती । आप लोगों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि 'धर्म का भूषण वैराग्य है, वैभव नहीं ।' वैभव और विलास में पशुता का वास है, और वैराग्य में दिव्यता का । जो जीवन अहिंसा, संयम और तप पर आधारित है, उसे दैवी जीवन कहा जाएगा । क्योंकि इसमें मनुष्य के मौलिक गुणों के विकास पर बल दिया गया है । अहिंसा, प्रेम, सत्य, ब्रह्मचर्य और सन्तोष आदि मनुष्य के मौलिक गुण हैं । महाकवि गेटे कहता है—“ The basis of all progress is self-reliance”—मनुष्य की समस्त प्रगति का मूल आधार, उसकी आत्म-निर्भरता है । आत्म-निर्भरता का अर्थ है- 'अपनी शक्ति से अपना विकास करना ।' जो जीवन आत्म मुखी होता है, उसे अध्यात्म- - जीवन कहते हैं । जीवन का यह चरम विकास है । अध्यात्म जीवन का विकास तीन तथ्यों पर आधारित है— सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् -- - चारित्र । टेनीसन कहता है—'Self-reverence, Self-knowledge, and Self-control, these three alone lead life to sovereign power — आत्म-विश्वास, आत्म-ज्ञान और आत्म-संयम केवल ये तीन तत्व जीवन को परम शक्तिशाली बनाते हैं । इन गुणों के सम्पूर्ण विकास को ही वस्तुतः अध्यात्म जीवन कहते हैं ।
मैं अभी आपसे कह रहा था कि इस पवित्र पर्व - दिवसों में आप अपनी आत्मा का निरीक्षण और परीक्षण कर देखें, कि आपका जीवन, आसुरी - जीवन तो नहीं है । अपने जीवन को दिव्यता और अध्यात्म की
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