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________________ समत्व-योग समत्व-योग मनुष्य विश्व का श्रेष्ठतम प्राणी है । भारतवर्ष के ऋषि-महर्षियों ने ही नहीं, बल्कि विश्व के सभी तत्वज्ञानियों ने एक स्वर से मानव जीवन के महात्म्य का वर्णन किया है । उसमें चिन्तन और मनन की शक्ति है, साधक बनने की क्षमता है । असीम सुखों में डूबे रहने वाले देव भी मानव की स्पर्धा नहीं कर सकते । मानव अनन्त शक्ति और तेज का पुञ्ज है । जीवन तो पशु-पक्षियों को भी मिला है । हजारों-लाखों कीट मिट्टी में पैदा होते हैं और मिट्टी चाटते-चाटते ही अपनी जीवन-लीला समाप्त कर पुनः मिट्टी में मिल जाते हैं । प्रतिदिन हजारों पशु जन्म ग्रहण करते हैं और उस विकराल काल के गाल में चले जाते हैं । अनेक प्राणी जन्म, जरा और मरण के चक्र में पिस रहे हैं । मानव जीवन भी नश्वर अवश्य है, किन्तु उसके छोटे से जीवन में भी एक चमक है । उसने विवेकपूर्ण और तेजस्वी जीवन के लिए ही तो उसे यह उच्च पद प्राप्त हुआ है । पशु-पक्षियों के जन्म पर न तो बधाइयाँ बजती हैं और न उनके मरण पर शोकाश्रु छलकते हैं । पशु अपने जीवन में उत्थान की ओर अग्रसर नहीं हो पाता । उसे तो जैसे-तैसे अपने जीवन के दिन व्यतीत करने हैं । अपने पूर्व संस्कारों के कारण पशु-पक्षी घोंसले बना लेते हैं, माँद खोद लेते हैं, बिल बना लेते हैं, पर वे पशु-जाति के लिए किसी संस्कृति या सभ्यता का निर्माण नहीं कर पाते । अन्तिम घड़ियों तक मरण-वेला तक भी उसके जीवन में कोई अन्तर नहीं आता । पर मनुष्य की स्थिति उससे सर्वथा भिन्न है । वह कदम-कदम पर परिवर्तन और नवीनता चाहता है । वह जिस रूप में जन्म लेता है, उसी स्थिति में सम्पूर्ण जीवन नहीं बिता देता । यदि ऐसा होता तो वह नग्नावस्था में ही अपनी जिन्दगी बिता सकता था, जो स्थिति जन्म के समय थी, अन्त तक वही बनी रहती, किन्तु उसने तो निर्माण करना सीखा है और वह निरन्तर नव-निर्माण में संलग्न रहता है । - १७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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