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________________ मार्ग और मंजिल जगा देती है । वह भगवान से कोई भिक्षा नहीं मांगता, किन्तु उसके प्रकाश से अपने ही खजाने को ढूँढ़ता है, अपने आपको पाता है । अपनी गांठ खोल राजस्थान के एक सन्त कवि ने कहा है-साधक ! तुम स्वयं दरिद्र और कंगाल नहीं हो, तुम क्यों किसी के समक्ष गिड़गिड़ाते हो, अपनी गठरी खोल कर देखो ! तुम्हारे पास कितने बेश कीमती जौहर छिपे हैं भीखा भूखा कोई नहीं सबकी गठरी लाल । गाँठ खोल जानत नहीं तासे भयो कंगाल ॥ संसार की अनन्त आत्माओं में कोई भी दरिद्र और पददलित नहीं है, सबकी आत्मा रूपी गठरी में परमात्मतत्व का ऐश्वर्य भरा पड़ा है, किन्तु वह अपनी उस गठरी को खोल नहीं पाने के कारण अपने को दरिद्र और कंगाल मान रहा है और संसार के सामने हाथ फैलाए गिड़गिड़ा रहा है । यही बात एक-दूसरे ऋषि ने कही है - पास ही रे हीरों की खान, खोजता कहाँ उसे नादान ! कबीर जैसा संत कवि तो इस विषय पर बहुत-बहुत कह गया है : तेरा साईं तुज्झ में ज्यों पुहुपन में बास । कस्तूरी का मृग ज्यों फिर-फिर ढूंढ़े घास ॥ अर्थात् तेरा ईश्वर कहीं बाहर नहीं है, तेरे ही अन्दर या तू ही है, जब तक अज्ञान का पर्दा पड़ा है तब तक तु दरिद्र बना है, और उसे कोई दूसरी शक्ति समझकर बाहर खोज रहा है । किन्तु जिस दिन यह अज्ञान का पर्दा हट जाएगा उस दिन तेरे अन्दर की अनन्त शक्तियाँ जग उठेगी और तू परम मस्ती से 'सोऽहम् सोऽहम्' पुकार उठेगा । मार्ग कहाँ है अब सवाल यह आता है कि ईश्वरत्व को जगाने का उपाय क्या है । अन्दर में कैद ईश्वर कैसे मुक्त होकर हमारे सामने आ सकता है ? जैन दृष्टि इस सवाल का जवाब देती है कि तुम अपना मार्ग निश्चित करो, जीवन का लक्ष्य स्पष्ट करो, उस लक्ष्य के बारे में अपने मन को दृढ़ करके चल पड़ो । जैन परिभाषा में ईश्वर प्राप्ति या ईश्वरत्व को जगाने का अर्थ यही - - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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