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सुदर्शन का अभय-दर्शन
सब की दृष्टि सुदर्शन और अर्जुन पर टिकी हुईं थीं । लोग दूर-दूर से देख रहे थे, अब भी उनका दिल आशंकित था कि क्या पता फिर वही नशा चढ़ जाये तो ? दूध से जला छाछ को भी फूंककर पीता है । लोगों के दिलों में इतना साहस भी नहीं था । निष्ठा भी नहीं थी कि वे इतनी जल्दी किसी हत्यारे का विश्वास करते । और प्रेम की वे आँखें भी नहीं जिससे अर्जुन माली के हृदय को पढ़ सके । सुदर्शन के साथ अर्जुन माली भगवान की सभा में पहुँचा । भक्तिपूर्वक वंदना की और उपदेश सुनने बैठ गया ।
भगवान का उपदेश अर्जुन के हृदय को बींधता हुआ आर-पार हो गया । उपदेश खत्म होने पर वह उठा और भगवान के चरणों में आकर उपस्थित हुआ—भगवान ! मेरा उद्धार करो । मैंने जीवन भर पाप किए हैं, अनेक निपराध स्त्री, पुरुषों और मासूम बच्चों का खून किया है, मैं बड़ा पापी हूँ। मुझे कल्याण का पथ दिखाओ । कहते-कहते उसकी आँखों में पश्चात्ताप के आँसू बह चले । उसने फिर निवेदन किया-प्रभो ! मैं इस पाप का प्रायश्चित्त करना चाहता हूँ । आपके चरणों में दीक्षित होकर तपस्या की आग में अपनी आत्मा को तपाऊँगा । भगवान ने कहा-अहासुहं देवाणुप्पिया ! जैसा सुख हो, वैसा करो । बस ! भगवान की अनुमति मिली
और वह दीक्षा लेकर अब बेले-बेले की तपस्या करने लग गया, पारणे में नाना प्रकार के अभिग्रह प्रतिज्ञा आदि भी करने लगा । जब वह नगर में भिक्षा लेने को निकलता तो लोग उसे देखकर आक्रोश पूर्वक ढेले फेंकते, गालियाँ निकालते । कोई कहता—यह मेरे पुत्र का हत्यारा है, अब ढोंगी साधु बन गया है, कोई कहता इसने मेरी स्त्री की हत्या कर दी है । इस प्रकार नाना प्रकार की ताड़ना और त्रास उसे दी जाने लगी । अर्जुन मुनि बड़ी समता से उसे सुनता । मन में सोचता ये तो मुझे सिर्फ गालियाँ ही निकालते हैं, या पीटते ही हैं; किन्तु मैंने तो इनके स्वजनों के खून से हाथ रंगे हैं, वास्तव में ही मेरे कृत्य निन्दनीय हैं । ___ यह एक महान साधक था । अनेक तर्जना, ताड़ना एवं त्रास को समभावपूर्वक सहते हुए अपनी आत्मा को कसता है, तपाता है और स्वर्ण की तरह उज्वल बनाता है । प्रतिदिन सात-सात मनुष्यों की हत्या करने वाला व्यक्ति उसी जीवन में महान साधना करके मुक्त हो जाता
पर्युषण के दिनों में इतिहास के इन गुलदस्तों को इसलिए खोला जाता
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