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पर्युषण-प्रवचन
सकती हैं । जहाँ-जहाँ भी प्रेम का देवता प्रकट हुआ है वहाँ हिंसा इसी प्रकार परास्त हुई है । अनेक अर्जुन माली और अंगुलीमाल अहिंसा की शरण में आकर कृत-कृत्य हुए हैं ।
हाँ, तो जब अर्जुन माली का कोई वार सुदर्शन पर नहीं चल सका तो वह घबड़ा गया, उसका शरीर बिल्कुल शिथिल और सत्त्वहीन हो गया । वह मूर्छा खाकर धड़ाम से सुदर्शन के चरणों में गिर पड़ा । सुदर्शन ने अब उपद्रव शान्त हुआ देखकर कार्योत्सर्ग पूर्ण किया और अर्जुन माली को हवा देकर चैतन्य किया । अर्जुन ने जब सुदर्शन को हवा देते देखा तो वह रो पड़ा, मैं तुम्हें मारने दौड़ा और तुम मुझे हवा देकर होश में ला रहे हो । सचमुच तुम मनुष्य नहीं देवता हो । मुझ अधम दुष्ट का अपराध क्षमा करो । मैंने बहुत हत्याएँ कीं । अन्याय किए अब क्या होगा — कहते-कहते वह सिसकारियाँ भरने लग गया । सुदर्शन ने उसे धैर्य बँधाया । अर्जुन माली ! घबराओ मत ! तुमने जो पाप किए हैं उनका प्रायश्चित्त भी हो सकता है ? उनसे मुक्त होने का रास्ता भी मिल सकता है । अर्जुन ने कहा— क्या मेरा उद्धार भी हो सकता है ?
सुदर्शन ने कहा – हाँ ! जरूर हो सकता है ।
अर्जुन — कहाँ ? कौन ऐसा महापुरुष है जो मुझ पतित को पावन कर सकता है ?
सुदर्शन ने उसका हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा- चलो मेरे साथ ! मैं तुम्हें उस देवता के चरणों में ले चलूँ, जिसने तुम्हारे जैसे अनेक अधमों का उद्धार किया है । उसकी वाणी में वह जादू है, जिसने असंख्य अधमों को बदल दिया है ।
महावीर की शरण में
नगर के लोग इस घटना को बड़े आश्चर्य के साथ देखते रहे ! अर्जुन माली को सुदर्शन के चरणों में गिरा देखकर तो दंग रह गये; और जब-जब वह उसके साथ पतितपावन भगवान महावीर की शरण में जाने को तैयार हुआ, तो लोगों को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ । मुँह - मुँह पर अब सुदर्शन के धैर्य, अभय एवं दृढ़ निष्ठा की प्रशंसा होने लगी । नगर का संकट टल गया । द्वार खुल गये और पिंजड़े से छूटे कबूतर की तरह हजारों नर-नारियाँ किलकते, कूदते भगवान महावीर के समवशरण की ओर चल पड़े ।
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