________________
सुदर्शन का अभय-दर्शन
भारतीय संस्कृति वीरत्व और साहस की संस्कृति रही है । उसका हृदय आत्मा की अनन्त शक्तियों से खींचा गया है, इसलिए उसकी अहिंसा भी शौर्य-प्रधान रही है, और उसकी करुणा का स्रोत भी वीरत्व के महानद से निकला है । भारत की वीरता शरीर की हृष्ट-पुष्टता तथा माँसलता पर कभी केन्द्रित नहीं हुई, बल्कि वह सदा आत्मा के साहस
और धैर्य पर अवलम्बित रही है । वहाँ वीरता का मापदण्ड–'कितनों की मौत के घाट उतारा' इसमें नहीं किया गया है, अपितु कितनों को अभय दिया, मौत से लड़ने का साहस कितना है, इसी बात पर से तोला गया है । मृत्यु के रौद्र अट्टहास पर भी जो हँसते रहे, और अपने जीवन एवं धैर्य से उसे परास्त कर दिया उनकी वीर गाथाएँ भारत के हृदय में लिखी हुई हैं । उनकी प्रकाश-रश्मिएँ आज भी हमारे पथ को आलोकमय बना रही हैं, हमें अभिनव प्रेरणाएँ दे रही हैं । संस्कृतिओं का केन्द्र
आज हम एक ऐसी ही सुविश्रुत घटना की चर्चा करेंगे जिसकी याद से ही हमारी नसों में एक नया रक्त दौड़ने लग जाता है । भगवान महावीर के युग की वह घटना है । आज से पच्चीस सौ वर्ष पहले, भारत की वही प्रसिद्ध नगरी राजगृह जिसका अतीत गौरव पूर्ण रहा, वर्तमान उन्नतिशील था, राजगृह उस समय धन-कुबेरों की नगरी थी, व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था । राजा श्रेणिक की निर्भीक और संतुलित राज्य व्यवस्था और अभय कुमार की नीति कुशलता ने राजगृह के इतिहास को अमर बना दिया । इतिहास की दृष्टि से राजगृह ने अनेक उत्थान पतन देखे, अनेक नाम-करण देखे, जरासन्ध जैसे दुर्धर योद्धाओं की राजधानी रही, बीच में उसका वैभव लुट गया और श्रेणिक के समय में वह पुनः नई अंगड़ाई भरकर पुलक उठी । भगवान महावीर की तरह बुद्ध की भी वह प्रिय नगरी थी । वहाँ पर भगवान महावीर ने ग्यारह चातुर्मास बिताए, और बुद्ध ने भी अनेक वर्षावास राजगृह में गुजारे ।. इस प्रकार सांस्कृतिक दृष्टि से भी राजगृह दो महान् संस्कृतिओं का संगम स्थल रही । भगवान महावीर के अनेक कोटयाधीश, अब्जपति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org