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________________ पर्युषण-प्रवचन सोना खरा है । दूर खड़े-खड़े आलोचना करते रहने से ही काम नहीं चलेगा कि इसमें क्या रखा है ? धर्म-कर्म और क्रियाकाण्डों में क्या है ? जब तक ये तरुण दूर से आलोचना करने का मार्ग छोड़कर समीप नहीं आयेंगे और तर्क की कसौटी पर हर चीज को नहीं परखेंगे, तब तक काम नहीं चलने का । विचारों के क्षेत्र में, धर्म के क्षेत्र में जब तक नहीं आयेंगे, तब तक आलोचना का क्या अर्थ है ? ये धर्म और सिद्धान्तों के ज्ञान के खुले हुए दरवाजे उनका इन्तजार कर रहे हैं । जब तक अन्दर आकर आप नहीं देखेंगे, धर्म के उस विराट स्वरूप को, उसके रहस्य को और गौरव को आप नहीं जान सकेंगे । गंगा बह रही है और आप दूर किनारे पर खड़े बातें कर रहे हैं कि पानी खारा है या मीठा, मैला है या धुंधला ? न मालूम कैसा पानी है, अतः यहाँ से चलो, कौन नहाए इसमें ? इसी तरह युवक भी आज दूर से ही बातें बनाते रहते हैं पर धर्म की गंगा पुकार कर कहती है कि मेरा पानी मीठा है, खारा है या ठण्डा है, कैसा है ? यह देखने के लिए जरा नजदीक आओ । दूर खड़े क्यों फुसफुसा रहे हो ? एक डुबकी लगाओ ताकि पता चले कि पानी कैसा है ? तभी जीवन का सच्चा आनन्द मिलेगा । अहिंसा कहती है कि मुझे परखो, मैं असली सिक्का हूँ या नकली सिक्का । जैन धर्म का साहित्य, दर्शन, कर्मवाद और स्याद्वाद जैनों को ही नहीं अपितु संसार के नौजवानों को चुनौती दे रहा है कि तुम दूर खड़े दिमाग और बुद्धि को हवा में उड़ाये क्यों ले जा रहे हो ? जरा पास आओ और परखो कि हम खरे सिक्के हैं या नकली। हजारों वर्षों से संसार पर प्रभुत्व जमाने वाले सिक्के कहीं आज खोटे तो नहीं बन गये ? यह खोटापन इन सिक्कों में है या तुम्हारे दिमागों में आ गया है ? ये नौजवान अपने पिता से तिजोरी और दुकानों की चाबियाँ अपने हाथ में लेने का विचार करते होंगे पर कभी बहुमूल्य धर्म रथ को चलाने का उत्तरदायित्व लेने के भाव मन में पैदा हुए या नहीं ? भारतवर्ष के हमारे पूर्वजों ने अपनी इसी तरुणावस्था में समुद्र के वक्षस्थल पर पोतों को दौड़ाया है, वे भारतवर्ष के व्यापार को नहीं बढ़ा रहे थे बल्कि बर्मा, श्याम, जावा, सुमात्रा, मलाया, इंडोचायना आदि देशों में अपने धर्म, अहिंसा और सत्य का सन्देश और उसकी विजय पताका भी फहरा रहे थे । हजारों युवक आस-पास के देशों में ही नहीं, दूर-दूर भी गये । सम्भव है, हाथ में तलवार लेकर भी गये हों । पर तलवार - - - ११० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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