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________________ पर्युषण-प्रवचन पर यह शरीर टिका हुआ है । आत्मा के बिना शरीर का कोई मूल्य नहीं । जब तक आत्मा है तब तक तन में प्राण है, वाणी है, चमक है, ज्योति है और जरा उसने किनारा किया नहीं कि वे सारे हाव-भाव, समस्त दृश्य गायब हो जाते हैं, वाणी मूक हो जाती है । हाँ तो यहाँ गज सुकुमार अर्जुनमाली, अतिमुक्त कुमार आदि महापुरुषों के उसी आत्म-स्वरूप का विवेचन किया जा रहा है । न हि तेजो वयः समीक्षते आगम के पृष्ठों पर अतिमुक्त कुमार को हम एक बालक के रूप में देखते हैं, परन्तु यहाँ उसके उस शरीर को महत्त्व नहीं दिया गया । यहाँ तो उसके जीवन की विशाल और विराट् आत्मा की महत्ता है और इस महानता के सम्मुख शरीर का छोटापन, बड़ापन कोई अर्थ नहीं रखता । भगवान महावीर ने अतिमुक्त के शरीर को नहीं जगाया, उन्होंने जगाया उस सुषुप्त आत्मा को जो एक ही आवाज में जाग उठी । आप शायद सोचते होंगे कि अतिमुक्त कुमार की अभी उम्र ही क्या थी ? खेलने-कूदने, चौकड़ियाँ भरने, खाने-पीने और किलकारियाँ मारने की उम्र में ही चल पड़ा है यह वैराग्य के हिमालय की चोटियों को लाँघने के लिए । यह वैराग्य के महासमुद्र को तैरने के लिए आगे बढ़ रहा है । जिसका नन्हा सा सुकोमल शरीर एक छोटी-सी थपेड़ में तिलमिला सकता है, वह इस विशाल जगत में जगमगाता हुआ चल रहा है । बात क्या है ? इस बाल-साधक में आत्म- बल था, दिव्य - भव्य - ज्योति थी, अलौकिक प्रकाश था, उसी के सहारे वह अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा रहा था । - अग्नि की छोटी-सी चिनगारी लाखों मन घास-फूस के ढेर को जला देती है । क्या चिनगारी उस विशाल तृण - राशि को देखकर काँपती है ? डरती है ? वह यह नहीं सोचती कि लाखों मन घास का ढेर कहाँ और मेरी नन्हीं सी काया कहाँ ? वह तो यह कहेगी कि मैं अग्नि हूँ, यह लाखों मन घास तो बहुत थोड़ी है मेरे सामने मुकाबला करने के लिए तो और लाओ, मैं अकेली ही उस सबको नष्ट करने का सामर्थ्य रखती हूँ । जिसके पास तेज है, उसे छोटा क्यों समझते हो ? हाँ, चिनगारी शुरू होनी चाहिए, कहीं बुझा हुआ कोयला हो तो उससे काम नहीं बनेगा । एक ओर मदमस्त गजराज है साठ वर्ष का या सौ वर्ष का । वह मनों अस्थि-मांस का बोझ लिए हुए है । अपनी मस्त - गति से झूमता हुआ चला Jain Education International १०२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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