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________________ पर्युषण-प्रवचन यही हुआ कि वास्तव में अभी तक उसकी आत्मा तैयार हुई ही नहीं है । अतिमुक्तक कुमार की आत्मा में बलवती स्फुरणा जग उठी थी-अब उसके लिए एक-एक क्षण भी बहुत लम्बा और असह्य हो रहा था । वह भगवान के समवशरण से सीधा अपने राजमहलों में आया, माता ने कुमार के मुख पर अतीव प्रसन्नता देखी तो वह भी खिल उठी, किन्तु ज्यों ही कुमार ने कहा मैं भगवान महावीर के पास दीक्षा लूँगा, तो माता अवाक रह गई ! खिले हुए शतदल कमल पर जैसे हिम पात हो गया, वह मूर्छा खाकर गिर पड़ी । दासियों ने रानी की हवा की, पानी के छींटे दिए, रानी को होश आया तो वह कुमार को बाहों में पकड़ कर गोद में बिठा लिया, बार-बार उसका सिर चूमने लगी-मेरे प्रिय कुमार ! तुम अभी बच्चे हो । तुम्हें क्या मालूम धर्म दीक्षा क्या होती है, उसमें कितने-कितने कष्ट उठाने पड़ते हैं, अभी ऐसी बात मत कहो, जब सयाने हो जाओ, तब देखा जायेगा, अभी तो कुछ जानते भी नहीं हो, तुम्हारे दूधिये दाँत भी नहीं सूके हैं । कुमार ने माता की ममता भरी बातें सुनीं, उसने कहा-माँ ! मैं जानने योग्य सब जानता हूँ, जिसको जानता हूँ उसको नहीं जानता और जिसको नहीं जानता उसको जानता हूँ । माता ने इस पहेली का अर्थ पूछा तो कुमार ने विश्लेषण करते हुए बताया कि मैं जानता हूँ कि जिसने जन्म लिया है, वह अवश्य मरेगा, किन्तु यह नहीं जानता कि वह कब, कहाँ, कैसे मरेगा ? इसलिए मैं जिसको जानता हूँ उसको नहीं जानता, और मैं यह नहीं जानता कि किसने कब कहाँ कैसे कर्म किए हैं, किन्तु यह जरूर जानता हूँ कि जो आज दुःख पा रहा है, अन्धेरी गलियों में ठोकरें खा रहा है, उसने वैसे कर्म जरूर किए हैं । तैराने वाला तिर गया माता ने कुमार की विचित्र ज्ञान भरी बातें सुनी तो बड़ा आश्चर्य हुआ, माता-पिता के बहुत-बहुत समझाने पर भी कुमार का दृढ़ निश्चय नहीं बदल सका, आखिर संकल्प की विजय हुई, माता-पिता ने अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए एक दिन के लिए उसका राज्याभिषेक किया । राजतिलक होने पर जब उससे आदेश-निर्देश के लिए पूछा तो कुमार ने अपनी दीक्षा की तैयारी के लिए आज्ञा ली, और फिर बड़े समारोह के साथ भगवान महावीर के चरणों में उसने प्रव्रज्या ग्रहण की । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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