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________________ पर्युषण-प्रवचन मिटाया जाय और उसके स्थान पर नई परम्पराएँ, नया वातावरण सर्जन करके समाज को नया पोषण दिया जाय । इसके साथ-साथ जो शाश्वत सत्य है, त्रिकाल सिद्ध है जिनसे सदा ही पोषण मिलता आया है उनकी रक्षा की जाय, ध्रुवता स्वीकार की जायेगी । जैन आगमों में जो वर्णन आते हैं, उनसे स्पष्ट है कि कुछ मर्यादायें देश काल विशेष के लिए ही बनी थी, वे परिस्थितियाँ बदलने पर उन मर्यादाओं का मूल्य भी बदल गया है, कुछ त्रिकाल सापेक्ष होती हैं, उनका महत्व जीवन के हर चरण पर स्वीकार किया जाता है । जैन-चिंतन बहुत ही गम्भीर है, वह किसी भी वस्तु को एकान्तिक रूप से स्वीकार नहीं करता । वह कहीं व्यवहार (परम्परा) को महत्व देता है तो कहीं निश्चय (भावना) को । जैन धर्म के निश्चय और व्यवहार को बिना समझे कुछ निर्माण कर लेना उसके साथ बड़ा अन्याय होगा । ___ हाँ, तो गौतम स्वामी का प्रश्न यह है कि उन्होंने मर्यादा की अपेक्षा भावना को महत्व दिया, और वह इसलिए दिया कि, अंगुली पकड़ने से भी मर्यादा में कहीं दोष क्षति नहीं हो रही थी, किन्तु यदि अंगुली छुड़ाने का प्रयत्न किया जाए तो बच्चे की कोमल श्रद्धा और भावनाओं को बहुत ठेस पहुँचती । वे ज्ञानी थे, इसलिए मर्यादा की अपेक्षा भावनाओं का महत्व अधिक समझा और इसीलिए उसी को प्रमुखता दी । बुद्ध का एक कथानक आता है कि एक बच्चा धूल में खेल रहा था । उसने एक मुट्ठी धूल लेकर बुद्ध के पात्र में देना चाहा, इस पर दूसरे लोग हल्ला करने लगे, परन्तु बुद्ध ने अपना पात्र बच्चे के आगे कर दिया, बालक ने पात्र में धूल डाल दी और खुशी के मारे उछलने लगा। लोगों ने उनसे पूछा कि यह क्या किया ? तो इस पर गम्भीर होकर बुद्ध ने बताया कि बालक में देने का संकल्प उत्पन्न हुआ, यदि वह नहीं लेते तो उसकी देने की वृत्ति जो जागृत हुई थी, वह कुचल जाती, बच्चा निराश और दुखी हो जाता । उसमें देने का संकल्प तो उठा है न ? उसको सुधारा जा सकता है । महापुरुष सिर्फ शरीर को ही नहीं देखते, व्यवहार के कलेवर में ही नहीं बंधे रहते हैं, बल्कि उसकी आत्मा का भी अध्ययन करते हैं और गौतम स्वामी ने यही किया । मन भी दे दिया श्रीदेवी ने जब अपने लाडले को इस प्रकार गौतम स्वामी की अंगुली D Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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