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________________ पर्युषण-: -प्रवचन गौतम स्वामी अपने सभी काम स्वयं ही करते थे । भगवान महावीर के साथ वे पोलासपुर नगर में आए और भिक्षा का समय होने पर भगवान की अनुमति लेकर भिक्षा के लिए चल दिए । चल दिए अँगुली पकड़े नगर के मध्य में एक क्रीड़ा स्थल बना हुआ था, जिसे उस युग की भाषा में 'इन्द्रध्वज' या 'इन्द्रप्रस्थान' कहते थे । आज की भाषा में वह एक पार्क था, जिसमें बच्चे, युवक खेलकूद करते थे । उसी पार्क में बच्चे खेल रहे थे और गौतम स्वामी उधर से गुजरे । गौतम स्वामी को वहाँ से गुजरते बहुत से बच्चों ने देखा होगा, किन्तु देखकर भी सब अपने खेल में मग्न थे, एक बच्चा वहाँ से खिसक कर गौतम स्वामी की ओर दौड़ा और उसने गौतम स्वामी को प्रणाम किया । उसने ऐसी वेशभूषा जीवन में पहली बार देखी थी, इसलिए मन में कुतूहल हो रहा था; किन्तु फिर भी उसके संस्कार इतने ऊँचे थे कि वह भले ही वंदना की विधि न जानता हो किन्तु सभ्यता तो जानता ही था ? गौतम स्वामी के शांत व तेजस्वी मुख मण्डल से वह प्रभावित हो गया । और हाथ जोड़कर उनसे प्रश्न किया- - आप कौन हैं ? और किसलिए घूम रहे हैं ? ये प्रश्न यद्यपि एक बालक ने किए हैं, किन्तु आदि काल से साधु के सामने उपस्थित होते रहे हैं । उसकी वेशभूषा समाज से एक दम भिन्न है, गृहस्थ जहाँ रंगबिरंगे फैन्सी कपड़े पहन कर अपने शरीर को सजाना चाहते हैं वहाँ साधु सिर्फ सफेद कपड़े सादे और सीधे ढंग से पहने घूमता है, जो उसके नियम नहीं जानते उन्हें अवश्य ही आश्चर्य होता है, और फिर घर-घर पर भिक्षा के लिए घूमना । जबकि एक या दो घर में ही उसे पेट भर भिक्षा मिल सकती है वह क्यों घर-घर में घूमता है ? भगवान गौतम ने राजकुमार की यह मुग्धता, यह सुकुमार और सरल आकृति और जानने की उत्सुकता देखी तो वे भी बरबस उसकी ओर खिंच गये । उन्होंने कहा — देवानुप्रिय ! हम श्रमण निर्ग्रन्थ हैं । शरीर निर्वाह के लिए जो भोजन चाहिए उसके लिए घर-घर घूमकर थोड़ा-थोड़ा भोजन लेते हैं । राजकुमार इस उत्तर से बहुत खुश हुआ और कहने लगा आप हमारे घर चलिए और मेरी माँ आपको देखकर, तथा भिक्षा देकर बहुत आनन्दित Jain Education International ६२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001335
Book TitleParyushan Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages196
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Paryushan
File Size11 MB
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